bapu


Click here for Myspace Layouts

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

जो सत्संग में आगे बैठते हैं

ऊँची समझ:



एक संत के पास बहरा आदमी सत्संग सुनने आता था।

 उसे कान तो थे पर वे नाड़ियों से जुड़े नहीं थे। एकदम बहरा, एक शब्द भी सुन नहीं सकता था।

 किसी ने संतश्री से कहाः


"बाबा जी ! वे जो वृद्ध बैठे हैं, वे कथा सुनते-सुनते हँसते तो हैं पर वे बहरे हैं।"
बहरे मुख्यतः दो बार हँसते हैं – एक तो कथा सुनते-सुनते जब सभी हँसते हैं तब

 और दूसरा, अनुमान करके बात समझते हैं तब अकेले हँसते हैं।


बाबा जी ने कहाः "जब बहरा है तो कथा सुनने क्यों आता है ?

रोज एकदम समय पर पहुँच जाता है। चालू कथा से उठकर चला जाय ऐसा भी नहीं है,

घंटों बैठा रहता है।"
बाबाजी सोचने लगे, "बहरा होगा तो कथा सुनता नहीं होगा और कथा नहीं सुनता होगा

 तो रस नहीं आता होगा। रस नहीं आता होगा तो यहाँ बैठना भी नहीं चाहिए,


उठकर चले जाना चाहिए। यह जाता भी नहीं है !''

बाबाजी ने उस वृद्ध को बुलाया और उसके कान के पास ऊँची आवाज में कहाः "कथा सुनाई पड़ती है ?"

उसने कहाः "क्या बोले महाराज ?"

बाबाजी ने आवाज और ऊँची करके पूछाः "मैं जो कहता हूँ, क्या वह सुनाई पड़ता है ?"

उसने कहाः "क्या बोले महाराज ?"

बाबाजी समझ गये कि यह नितांत बहरा है।

बाबाजी ने सेवक से कागज कलम मँगाया और लिखकर पूछा...

वृद्ध ने कहाः "मेरे कान पूरी तरह से खराब हैं। मैं एक भी शब्द नहीं सुन सकता हूँ।"


कागज कलम से प्रश्नोत्तर शुरू हो गया।

"फिर तुम सत्संग में क्यों आते हो ?"

"बाबाजी ! सुन तो नहीं सकता हूँ लेकिन यह तो समझता हूँ कि ईश्वरप्राप्त महापुरुष जब बोलते हैं तो

पहले परमात्मा में डुबकी मारते हैं।

संसारी आदमी बोलता है तो उसकी वाणी मन व बुद्धि को छूकर आती है

 लेकिन ब्रह्मज्ञानी संत जब बोलते हैं तो उनकी वाणी आत्मा को छूकर आती हैं।

 मैं आपकी अमृतवाणी तो नहीं सुन पाता हूँ पर उसके आंदोलन मेरे शरीर को स्पर्श करते हैं।

 दूसरी बात, आपकी अमृतवाणी सुनने के लिए जो पुण्यात्मा लोग आते हैं

उनके बीच बैठने का पुण्य भी मुझे प्राप्त होता है।"


बाबा जी ने देखा कि ये तो ऊँची समझ के धनी हैं।

 उन्होंने कहाः "आप दो बार हँसना, आपको अधिकार है

किंतु मैं यह जानना चाहता हूँ कि आप रोज सत्संग में समय पर पहुँच जाते हैं और आगे बैठते हैं,

ऐसा क्यों ?"


"मैं परिवार में सबसे बड़ा हूँ। बड़े जैसा करते हैं वैसा ही छोटे भी करते हैं।

 मैं सत्संग में आने लगा तो मेरा बड़ा लड़का भी इधर आने लगा।

शुरुआत में कभी-कभी मैं बहाना बना के उसे ले आता था।

 मैं उसे ले आया तो वह अपनी पत्नी को यहाँ ले आया,

 पत्नी बच्चों को ले आयी – सारा कुटुम्ब सत्संग में आने लगा, कुटुम्ब को संस्कार मिल गये।"


ब्रह्मचर्चा, आत्मज्ञान का सत्संग ऐसा है कि यह समझ में नहीं आये तो क्या,
 
 सुनाई नहीं देता हो तो भी इसमें शामिल होने मात्र से इतना पुण्य होता है
 
कि व्यक्ति के जन्मों-जन्मों के पाप-ताप मिटने एवं एकाग्रतापूर्वक सुनकर इसका मनन-निदिध्यासन करे
 
 उसके परम कल्याण में संशय ही क्या !
 
 
 
(पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से)
 


waah bapuji waah.........

kya mast satsang karte ho....
mazza aa jata hai mere.....sai
kitna saral samjate ho.....
aapke satsang ko par k bhi aisa lagta hai jese samne beth k samja rhe ho....
or us satsang me hasa bhi dete ho rula bhi dete ho..........
or ishwer k raste laga bhi dete ho............
waah mere saiya tera kya kehna............
aap bhi pariye bapuji ka mast satsang ......agar rona na aa jaye tho bolna.............


visit here: http://www.loveubapu.blogspot.com/

hariommmmmmmmmmmm

contact us: kemofdubai@gmail.com

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

बापूजी का खजाना ( गुरुपूनम पर्व-15-07-2011 )

शिष्यों का अनुपम पर्व:


साधक के लिये गुरुपूर्णिमा व्रत और तपस्या का दिन है।


 उस दिन साधक को चाहिये कि उपवास करे या दूध, फल अथवा अल्पाहार ले,

 गुरु के द्वार जाकर गुरुदर्शन, गुरुसेवा और गुरु-सत्सन्ग का श्रवण करे।

 उस दिन गुरुपूजा की पूजा करने से वर्षभर की पूर्णिमाओं के दिन किये हुए सत्कर्मों के

पुण्यों का फल मिलता है।



गुरु अपने शिष्य से और कुछ नही चाहते।

वे तो कहते हैं:
                          तू मुझे अपना उर आँगन दे दे, मैं अमृत की वर्षा कर दूँ ।



तुम गुरु को अपना उर-आँगन दे दो।

अपनी मान्यताओं और अहं को हृदय से निकालकर गुरु से चरणों में अर्पण कर दो।

 गुरु उसी हृदय में सत्य-स्वरूप प्रभु का रस छलका देंगे।

गुरु के द्वार पर अहं लेकर जानेवाला व्यक्ति गुरु के ज्ञान को पचा नही सकता,

हरि के प्रेमरस को चख नहीं सकता।




जो शिष्य सदगुरु का पावन सान्निध्य पाकर आदर व श्रद्धा से सत्संग सुनता है

सत्संग-रस का पान करता है, उस शिष्य का प्रभाव अलौकिक होता है,



कितने ही कर्म करो, कितनी ही उपासनाएँ करो, कितने ही व्रत और अनुष्ठान करो,

 कितना ही धन इकट्ठा कर लो और् कितना ही दुनिया का राज्य भोग लो

लेकिन जब तक सदगुरु के दिल का राज्य तुम्हारे दिल तक नहीं पहुँचता,

सदगुरुओं के दिल के खजाने तुम्हारे दिल तक नही उँडेले जाते,

जब तक तुम्हारा दिल सदगुरुओं के दिल को झेलने के काबिल नहीं बनता,

तब तक सब कर्म, उपासनाएँ, पूजाएँ अधुरी रह जाती हैं।

देवी-देवताओं की पूजा के बाद भी कोई पूजा शेष रह जाती है

किंतु सदगुरु की पूजा के बाद कोई पूजा नहीं बचती।




सदगुरु अंतःकरण के अंधकार को दूर करते हैं।

आत्मज्ञान के युक्तियाँ बताते हैं गुरु प्रत्येक शिष्य के अंतःकरण में निवास करते हैं।

वे जगमगाती ज्योति के समान हैं जो शिष्य की बुझी हुई हृदय-ज्योति को प्रकटाते हैं।

 गुरु मेघ की तरह ज्ञानवर्षा करके शिष्य को ज्ञानवृष्टि में नहलाते रहते हैं।

 गुरु ऐसे वैद्य हैं जो भवरोग को दूर करते हैं।

 गुरु वे माली हैं जो जीवनरूपी वाटिका को सुरभित करते हैं।

गुरु अभेद का रहस्य बताकर भेद में अभेद का दर्शन करने की कला बताते हैं।

 इस दुःखरुप संसार में गुरुकृपा ही एक ऐसा अमूल्य खजाना है

जो मनुष्य को आवागमन के कालचक्र से मुक्ति दिलाता है।



जीवन में संपत्ति, स्वास्थ्य, सत्ता, पिता, पुत्र, भाई, मित्र अथवा जीवनसाथी से भी ज्यादा

 आवश्यकता सदगुरु की है।

 सदगुरु शिष्य को नयी दिशा देते हैं, साधना का मार्ग बताते हैं और ज्ञान की प्राप्ति कराते हैं।




सच्चे सदगुरु शिष्य की सुषुप्त शक्तियों को जाग्रत करते हैं,

 योग की शिक्षा देते हैं, ज्ञान की मस्ती देते हैं,

 भक्ति की सरिता में अवगाहन कराते हैं और कर्म में निष्कामता सिखाते हैं।

इस नश्वर शरीर में अशरीरी आत्मा का ज्ञान कराकर जीते-जी मुक्ति दिलाते हैं।







सदगुरु जिसे मिल जाय सो ही धन्य है जन मन्य है।



सुरसिद्ध उसको पूजते ता सम न कोऊ अन्य है॥



अधिकारी हो गुरुदेव से उपदेश जो नर पाय है।



भोला तरे संसार से नहीं गर्भ में फिर आय है॥






अपने संकल्प के अनुसार गुरु को मन चलाओ

लेकिन गुरु के संकल्प में अपना संकल्प मिला दो तो बेडा़ पार हो जायेगा।



नम्र भाव से, कपटरहित हृदय से गुरु से द्वार जानेवाला कुछ-न-कुछ पाता ही है।

aap sabhi ko guru purima ki hardik shubkamnaye....
hariommmmmmmmmmm

hapy guru purnima

तुमने सिखाया उंगली पकड़ कर हमें चलना ,


तुमने बताया कैसे गिरने के बाद संभलना.

तुम्हारी वजह से आज हम पहुंचे इस मुकाम पे ,

गुरु पूर्णिमा के दिन करते हैं आभार-सलाम ऐ .

सोमवार, 11 जुलाई 2011

गुरु से नाता जुड़ा और फिर 1पापीन ने तोड़ दिया।

 जो कुकर्म करते हैं, दूसरों की श्रद्धा तोड़ते हैं

अथवा और कुछ गहरा कुकर्म करते हैं

उन्हें महादुःख भोगना पड़ता है

 और यह जरूरी नहीं है कि किसी ने आज श्रद्धा तोड़ी

तो उसको आज ही फल मिले। आज मिले, महीने के बाद मिले,

दस साल के बाद मिले... अरे !

कर्म के विधान में तो ऐसा है कि 50 साल के बाद भी फल मिल सकता है

या बाद के किसी जन्म में भी मिल सकता है। श्रद्धा से प्रेमरस बढ़ता

 किसी ने हमारा पैर तोड़ दिया तो वह इतना पापी नहीं है,

 किसी ने हमारा सिर फोड़ दिया तो वह इतना पापी नहीं है

जितना वह पापी है जो हमारी श्रद्धा को तोड़ता है।

""कबीरा निंदक निंदक न मिलो पापी मिलो हजार

 एक निंदक के माथे पर लाख पापिन को भार""



जो भगवान की, हमारी साधना की,

अथवा गुरु की निंदा करके हमारी श्रद्धा तोड़ता है

वह भयंकर पातकी माना जाता है।

 उसकी बातों में नहीं आना चाहिए।


निंदा करके लोगों की श्रद्धा तोड़नेवाले लोगों को तो जब कष्ट होगा तब होगा

लेकिन जिसकी श्रद्धा टूटी उसका तो सर्वनाश हुआ।

 बेचारे की शांति गयी, प्रेमरस गया, सत्य का प्रकाश गया।

गुरु से नाता जुड़ा और फिर पापी ने तोड़ दिया।