bapu


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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

happy diwali.............

मेरा संकल्प............... आप सभी भी सारे ना सही तो एक संकल्प तो ज़रूर लें.




1.हर साल दीवाली पर घर की सफाई करते हैं,इस साल अपने दिल की भी सफाई करेंगे.


2.हर साल दीवाली पर घर का कचरा बाहर फेंकते हैं,इस साल अपने दिल और दिमाग़ का कचरा (संसारिक बुराई) फेंकेंगे.

3.हर साल दीवाली पर घर को सजाते हैं,इस साल अपने चरित्र-अपने व्यक्तित्व को सजाएँगे.


4.हर साल दीवाली पर नये कपड़े और नया सामान घर लाते हैं,इस साल सत्संग का अमृतमय प्रसाद अपने घर लाएँगे.


5.हर साल दीवाली पर अपनो को उपहार और मीठाइयाँ दे कर खुश करते हैं,इस साल ग़रीब बच्चो को ये दे कर खुश करेंगे.


6.हर साल दीवाली पर अपनो के साथ खुशियाँ बाँटते हैं,इस साल अपने दुश्मनो को भी प्रेम से मिलेंगे.



7.हर साल दीवाली पर पटाखे जलाते हैं,इस साल अपने अहंकार और दोषों को जलाएँगे.



8.हर साल दीवाली पर घर को रंगते हैं,इस साल अपने दिल को जोगी-जोगेश्वेर के प्यार से रंगेंगे.



हरी ओम



सभी भाई-बहनो की इस साल की दीवाली पिछली बीती सभी दीवालियों से ज़्यादा शुभ हो, मंगलमय हो.





















रविवार, 9 अक्तूबर 2011

तेरे दरबार में झुकता है ....बापू सर मेरा......



तेरे दरबार में झुकता है ....बापू  सर  मेरा......

तेरे लिए जान भी हाज़िर है .............है क्या है मेरा.......

तेरे दरबार में झुकता है ....बापू  सर  मेरा......


तेरी रहमत .....तेरी रजा ...........है तक़दीर मेरी 

तेरी इबादत से पलटी है ..................लकीरे मेरी.....

रुख फिजा का बदल जाता .....ग़र.हो इशारा तेरा.....

तेरे दरबार में झुकता है....... बापू  सर  मेरा.....


तेरी राहों में है मंजिल ......बापू.... मेरी......

मुडती जेसे ......है ये राहें.......वेसे किस्मत मेरी 

तेरी राहों में है मंजिल... बापू   मेरी....

मुडती जेसे..... है ये राहें.......वेसे किस्मत मेरी 

ये गुजारिश है ..मेरे सर पे हाथ रहे तेरा.......

तेरे दरबार में झुकता है....... बापू  सर  मेरा.....



hariom

kamal hirani

contact :kemofdubai@gmail.com
dubai

शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

मेरे घर के आगे बापू.... तेरा मंदिर बन जाये ........

मेरे  घर  के  आगे बापू.... तेरा  मंदिर   बन  जाये ........

जब  खिड़की  खोलू  तो......  तेरा  दर्शन  हो  जाये .....

 मेरे  घर  के  आगे बापू.... तेरा  मंदिर   बन  जाये .......

जब  आरती  हो  तेरी ..... मुझे  घंटी  सुनाई  दे ........
मुझे  रोज  सवेरे  बापू .... तेरी  सूरत  दिखाई  दे .....
जब  भजन  करे  मिल  कर ..... रस  कानो   में  घुल  जाये ....
जब  खिड़की  खोलू  तो......  तेरा  दर्शन  हो  जाये .....

आते  जाते  बापू .............. मै  तुमको  प्रणाम  करू ............
जो  मेरे  लायक  हो  ..............कुछ  ऐसा  काम  करू ....

तेरी  सेवा  करने  से .......... मेरी  किस्मत  खुल  जाये .......
जब  खिड़की  खोलू  तो......  तेरा  दर्शन  हो  जाये .....

नजदीक  रहेंगे  तो ...... आना- जाना  होगा...........
अब  भक्तो   का  बापू  .......मिलना  झुलना  होगा .....
 सब  साथ  रहे  बापू ....... जल्दी  वो  दिन  आये ........
मेरे  घर  के  आगे बापू.... तेरा  मंदिर   बन  जाये ........
जब  खिड़की  खोलू  तो......  तेरा  दर्शन  हो  जाये .....

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

दान की महिमा.........dont misssssssss


एक भिखारी सुबह-सुबह भीख मांगने निकला

 चलते समय उसने अपनी झोली में जौ के मुट्ठी भर दाने डाल लिए

टोटके या अंधविश्वास के कारण भिक्षाटन के लिए निकलते समय भिखारी अपनी झोली खाली नहीं रखते। 

थैली देख कर दूसरों को लगता है कि इसे पहले से किसी ने दे रखा है।

 पूर्णिमा का दिन था, 

भिखारी सोच रहा था कि आज ईश्वर की कृपा होगी तो मेरी यह झोली शाम से पहले ही भर जाएगी।


अचानक सामने से राजपथ पर उसी देश के राजा की सवारी आती दिखाई दी।

 भिखारी खुश हो गया। उसने सोचा,

 राजा के दर्शन और उनसे मिलने वाले दान से सारे दरिद्र दूर हो जाएंगे, 

जीवन संवर जाएगा।

 जैसे-जैसे राजा की सवारी निकट आती गई,

 भिखारी की कल्पना और उत्तेजना भी बढ़ती गई।

 जैसे ही राजा का रथ भिखारी के निकट आया,

 राजा ने अपना रथ रुकवाया, उतर कर उसके निकट पहुंचे।

 भिखारी की तो मानो सांसें ही रुकने लगीं।

 लेकिन राजा ने उसे कुछ देने के बदले उलटे अपनी बहुमूल्य चादर उसके सामने फैला दी और भीख की याचना करने लगे


भिखारी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। 

अभी वह सोच ही रहा था कि राजा ने पुन: याचना की। 

भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला, 

मगर हमेशा दूसरों से लेने वाला मन देने को राजी नहीं हो रहा था।

 जैसे-तैसे कर उसने दो दाने जौ के निकाले और उन्हें राजा की चादर पर डाल दिया।

 उस दिन भिखारी को रोज से अधिक भीख मिली, मगर वे दो दाने देने का मलाल उसे सारे दिन रहा

 शाम को जब उसने झोली पलटी तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही।

 जो जौ वह ले गया था, उसके दो दाने सोने के हो गए थे।

 उसे समझ में आया कि यह दान की ही महिमा के कारण हुआ है। 

वह पछताया कि काश! उस समय राजा को और अधिक जौ दी होती, लेकिन नहीं दे सका, 

क्योंकि देने की आदत जो नहीं थी। 

hariommmmmmmmmmmmmmmmmmm