bapu


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मंगलवार, 18 जनवरी 2011

वास्तविक पूजा क्या है;

येनकेन प्रकारेण यस्य कस्यपि देहिन

संतोष जनयेद्राम तदेश्वर पूजनम्

किसी भी प्रकार से किसी भी देहधारी को संतोष प्रदान करना - यही वास्तविक पूजा है;

निराश्रित को आश्रय, अज्ञानी को ज्ञान, वस्त्रहीन को वस्त्र, भूखे को भोजन,

प्यासे को पानी, निर्बल की रक्षा, भूले भटके को सही राह,

दुखी को दिलासा, ईश्वर-परायण संत-सज्जन की सेवा,

रोते हुए को आश्वासन, थके हुए को विश्राम, निराश को आशा,

उदास को खुशी, रोगी को दवा, निरुद्यमी को उद्यम में लगाना,

अधर्मी को धर्म की राह पर मोड़ना, तप्त को शांति,

 व्यसनी को व्यसन-मुक्त बनाना, गिरे हुए को उठाना,

दीन-दुखी, अनाथ, निर्बल की सहायता करना, निराधार का आधार बनना,

अपमानितों को मान देना, शोक-ग्रस्त को सांत्वना देना,

अर्थात जहाँ जिसको जिस समय जैसी आवश्यकता हो,

उसे यथा-शक्ति मदद करनी चाहिए;

------पूज्य बापूजी

बुधवार, 12 जनवरी 2011

आज जो भी करोगे कई गुणा पुण्य हो जाएगा (उत्तरायण पर्व) (part 2)



उत्तरायण का पर्व पुण्य - अर्जन का दिवस है.



उत्तरायण का सारा दिन पुण्यमय दिवस है,

 जो भी करोगे कई गुणा पुण्य हो जाएगा.

 मौन रखना, जप करना, भोजन आदि का संयम रखना और भगवत् - प्रसाद को पाने का

 संकल्प करके भगवान को जैसे भीष्म जी कहते हैं

कि नाथ हे! मैं तुम्हारी शरण में हूँ. हे अच्युत! हे केशव! हे सर्वेश्वर!

 हे परमेश्वर! हे विश्वेश्वर! मेरी बुद्धि आप में विलय हो.




ऐसे ही प्रार्थना करते - करते, जप करते - करते मन - बुद्धि को उस सर्वेश्वर में विलय देना कर.

इन्द्रियाँ मन को सँसार की तरफ खीँचती हैं

और मन बुद्धि को घटाकर भटका देता है

.

 बुद्धि में अगर भगवद् - जप, भगवद् - ध्यान, भगवद् - पुकार नहीं है

 तो बुद्धि बेचारी मन के पीछे - पीछे चलकर भटकाने वाली जाएगी



 बन. बुद्धि में अगर बुद्धिदात की प्रार्थना, उपासना का बल है तो बुद्धि ठीक परिणाम का विचार करेगी

कि यह खा लिया तो क्या हो जाएगा?

- यह इच्छा करूँ वह इच्छा करूँ, आखिर क्या?

- ऐसा करते - बुद्धि मन की दासी नहीं बनेगी. करते ततः किं ततः किम्?

 - ऐसा प्रश्न करके बुद्धि को बलवान बनाओ तो मन के संकल्प - विकल्प कम हो जाएंगे,


मन को आराम मिलेगा, बुद्धि को आराम मिलेगा.

ब्रह्मचर्य से बहुत बुद्धिबल बढ़ता है. जिनको ब्रह्मचर्य रखना हो,

संयमी जीवन जीना हो, वे उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण का सुमिरन करें,

 जिससे बुद्धि में बल बढ़े.

सूर्याय नमः .........
शंकराय नमः .........
 गं गणपतये नमः ............
हनुमते नमः ......... भीष्माय नमः ........... अर्यमायै नमः ............




उत्तरायण का पर्व प्राकृतिक ढंग से भी बड़ा महत्वपूर्ण है.

 इस दिन लोग नदी में, तालाब में, तीर्थ में स्नान करते हैं



लेकिन शिवजी कहते हैं जो भगवद् - भजन, ध्यान और सुमिरन करता है

उसको और तीर्थों में जाने का कोई आग्रह नहीं रखना चाहिए,

 उसका तो हृदय ही तीर्थमय हो जाता है.

उत्तरायण के दिन सूर्यनारायण का ध्यान - चिंतन करके,

भगवान के चिंतन में मशगूल होते - होते आत्मतीर्थ में स्नान चाहिए करना.

उत्तरायण पर्व (part 1)


उत्तरायण पर्व के दिवस से सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर चलता है.

उत्तरायण से रात्रियाँ छोटी होने लगती हैं, दिन बड़े होने लगते हैं.

अंधकार कम होने लगता है और प्रकाश बढ़ने लगता है.


जैसे कर्म होते हैं, जैसा चिंतन होता है,

 चिंतन के संस्कार होते हैं वैसी गति होती है,

 इसलिए उन्नत कर्म करो, उन्नत संग करो,

उन्नत चिंतन करो. उन्नत चिंतन, उत्तरायण हो चाहे दक्षिणायण हो, आपको उन्नत करेगा.

इस दिन भगवान सूर्यनारायण का मानसिक ध्यान करना चाहिए

और उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि हमें क्रोध से, काम विकारों से चिंताओं से

 मुक्त करके आत्मशान्ति पाने में गुरू की कृपा पचाने में मदद करें.

इस दिन सूर्यनारायण के नामों का जप, उन्हें अर्घ्य - अर्पण और विशिष्ट मंत्र के द्वारा

उनका स्तवन किया जाय तो सारे अनिष्ट नष्ट हो जाएंगे, वर्ष भर के पुण्यलाभ प्राप्त होंगे.

ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नमः इस. मंत्र से सूर्यनारायण की वंदना कर लेना,

उनका चिंतन करके प्रणाम कर लेना.

 इससे सूर्यनारायण प्रसन्न होंगे, नीरोगता देंगे और अनिष्ट से भी रक्षा करेंगे.

रोग तथा अनिष्ट का भय फिर आपको नहीं सताएगा ह्रां. ह्रीं सः सूर्याय नमः. जपते जाओ

 और मन ही मन सूर्यनारायण का ध्यान करते जाओ, नमन करो.



सूर्याय नमः. मकर राशि में प्रवेश करने वाले भगवान भास्कर को हम नमन करते हैं.

 मन ही मन उनका ध्यान करते हैं.

 बुद्धि में सत्त्वगुण, ओज़ और शरीर में आरोग्य देनेवाले सूर्यनारायण को नमस्कार करते हैं.


नमस्ते देवदेवेश सहस्रकिरणोज्जवल.

लोकदीप नमस्ते कोणवल्लभ की स्तु नमस्ते ..

भास्कराय नमो नित्यं खखोल्काय नमो नमः.

विष्णवे कालचक्राय सोमायामातितेजसे ..

हे देवदेवेश! आप सहस्र किरणों से प्रकाशमान हैं.

 हे कोणवल्लभ! आप संसार के लिए दीपक हैं, आपको हमारा नमस्कार है.

विष्णु, कालचक्र, अमित तेजस्वी, सोम आदि नामों से सुशोभित एवं अंतरिक्ष में स्थित होकर

सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करने वाले आप भगवान भास्कर को हमारा नमस्कार है.

(भविष्य पुराण, ब्राह्म 153.50.51 पर्वः)



उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण के इन नामों का जप विशेष हितकारी  है.

मित्राय नमः रवये नमः. सूर्याय नमः. भानवे नमः. खगाय नमः. पूष्णे नमः. हिरण्यगर्भाय नमः.

मरीचये नमः. आदित्याय नमः. सवित्रे नमः. अर्काय नमः. भास्कराय नमः. सवितृ सूर्यनारायणाय नमः.

उत्तरायण देवताओं का प्रभातकाल है.

इस दिन तिल के उबटन व तिलमिश्रत जल से स्नान,

 तिलमिश्रित जल का पान, तिल का हवन, तिल का

भोजन तथा तिल का दान सभी पापनाशक प्रयोग हैं.

hariommmmmmmmmmm

sadguru dev ke satsang parvachan se........

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

किसी के पीछे तडपों नहीं

आप के जीवन में परिस्थिति की गुलामी ना रहे ऐसा जीवन बनाओ.

श्रीकृष्ण एकाएक  अंतर्धान हो गए.. ग्वाल-गोपियां   तडपे…



इतने में श्रीकृष्ण के दर्शन हुए.. ग्वाल  गोपियों ने पूछा, क्यों तड़पाते हो?

श्रीकृष्ण बोले,  ‘आप हम सदा थोड़ी मिले रहेंगे! मिलन सदा नहीं रहेता..

जरा अंतर्धान हो जाऊं तो तड़पते तो ऐसी आदत क्यों डालते?’

एक व्यक्ति खाते पीते  खुश-हाल जीवन जी रहा था ..

अचानक उस को अशरफियों की पोटली मिली… बड़ा खुश हुआ…

 ‘अब हम कोठी बनायेंगे, घोड़े लेंगे, खेत-खलिहान खरीदेंगे,

 ये करेंगे – वो करेंगे’  ऐसा कर के इतना अशांत हो गया की उस का खाना-पीना हराम हो गया….

 एकाएक  अशर्फियों की गठरी चोरी हो गयी …

अब वो आदमी सीर  पटक के रोने लगा…

 एक आदमी बोला,  ‘भले मानुस… ये गठरियां  नहीं थी तभी ख़ुशी से खाता -पिता था!

 अब नहीं  है तो  परिस्थिति आई और चली गयी..

अशर्फियों की पोटली  मिली और गयी…

जो लिया यही पर, जो दिया यही पर!.. 


 व्यर्थ्य  चिंतित हो रहे हो…. परेशान  मत हो …लाये क्या थे और ले क्या जाओगे?

जो चला गया रुपये, पैसे, धन , मित्र, पति, पत्नी चले गए तो उन के पीछे तडपों  नहीं, रोना नहीं…

जैसे बहेते पानी में तिनके मिलते और बिछड़ते  ऐसे परिस्थितियों में चीजे मिलती बिछड़ती .. 

 उस के लिए परेशान  क्यों होते?

अपने आप में जीना सीखो ..

बुरे का संग करने से साधू संतो का, भगवान के प्यारों का संग करना अच्छा है..

लेकिन कृष्ण ऐसा ज्ञान देते की ये भी सदा नहीं रहेगा..

परिस्थितियों के क्यों गुलाम होते?

 निसंग नारायण ही अपना आत्मा है ,

 उस में जीना सीखो… किसी 

ये ज्ञान आप क्यों  नहीं लेते?

hariommmmm  



वाह बापू वाह .....

आपके सत्संग  की अमृत वर्षा का रूप निराला ..... 

वाह साईं वाह क्या ज्ञान देते हो ......

आपकी जय हो मेरे बापू .........






शनिवार, 8 जनवरी 2011

प्रार्थना (दिल से)


१.हे  मेरे  गुरुदेव  मुझे  अपनी  शरण  में  ले  लो ......
  मुझे  इस  मोह  माया से  बचा  लो  मेरे  बापू ....


२.मुझे रोने ना देना मेरे साईं....
केसा  भी  हु  मैं .....पर  हु  तो  तेरा  बालक  ही  ना  प्रभु  ...


३.दिन  रात  गलती  पे  गलती  करता  हु में मेरे साईं ...
    तू  मेरा  हाथ  पकड़  लेना मेरे साईं........



४.मुझे  अपनी  और  खीच  ले   ना  मेरे  बापू ......
    इस  मोह  माया  से  बचा  ले ना   मेरे  बापू  ......


५.क्यों  नश्वर  में  मोह  करता  है  ये  नादान  मन ..........
   तुम  समजा  दो   ना  मेरे  मन  को  बापू ............



मुझे  अपनी  और  खीच  लो  मेरे  बापू ..


६.मुझे  अपनी  शरण  में  रख ले ना मेरे   प्रभु ....
 मेरी भूलो को क्षमा  कर दे ना मेरे  प्रभु ...
 यही अरदास तेरे इस नन्हे बालक की प्रभु......



त्रुटियों के लिए गुरुदेव माफ़ करना .....
हरिओम

नोट:(इस प्रार्थना का मतलब किसी निजी व्यक्ति से नही है )

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

pujyabapuji in star-news

हरिओम,

पूज्य गुरूजी  के  चरणों  में  प्रणाम ,

स्टार न्यूज़   पर  2008 में  इंडिया  टाइम  3.०० pm  को  समर्पण  करके  एक  प्रोग्राम  आता  है ,

 जिस में  हमारे  भारतीय  संस्कृति  के  सारे  पर्व  और  importance  के  बारे  में  बताया  जाता   है

में  बहुत  दुर्लब  मंदिरों  के  दर्शन भी  दिखाया  जाते

तो  कभी   कभार वक़्त  हो  तो  में   देख लेती  हु,

दो  दिन  पहले  इस  में  ओमकार  की  महिमा  के  बारे  में  बताया   जा रहा   था

तो  मन में  विचार  उठा  की  अगर  ये  लोग  बापूजी  से  पूछे  तो

 ओमकार  की  महिमा  का  उनके  अलावा  कोई  भी  वर्णन  नहीं  कर  सकता

 और  में   टीवी  के  स्क्रीन  से  पीठ  देकर  अपना  काम  कर  रही  थी

 की  इतने   में  पूज्य  बापूजी  टीवी  पर  ओमकार  की  महिमा  का  वर्णन  कर  रहे   थे


 मुझे  लगा  की  शायद  में  उनके  बारे  में  सोच   रही  हु


 इसलिए  मुझे  उनकी  आवाज़  सुनाई  दे  रही  है

 पर  जब  में ने  टीवी  देखा  तो   सच  मुच  बापूजी  ही  ओमकार  की  महिमा  का  वर्णन  कर  रहे  थे



ये  कैसा  है  जादू  समज  में  न  आया .तेरे  प्यार  ने  हम को  जीना  सिखाया ..............


मेरी  तो  ख़ुशी   का  ठिकाहाना  ना  रहा  मेरे  आँखों  से  ख़ुशी  के  मारे  आंसू   निकल  आये .


Hari Om,

एक साधिका बेहेन.

बुधवार, 5 जनवरी 2011

इस नन्हीं बालिका को देखो (anubhav)



परम पूज्य बापू जी के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम।




मैं हर रविवार को 'बाल संस्कार केन्द्र' में जाती हूँ।


 मैं तीसरी कक्षा में 60 % अंक लेकर पास हुई





और इस बार मुझे 94 % अंक मिले हैं।

बापूजी से सारस्वत्य मंत्रदीक्षा लेने के बाद मैंने मांस-मच्छी खाना छोड़ दिया।

फिर मेरे माता-पिता ने भी मेरा अनुकरण करते हुए यह सब छोड़ दिया।

जब मैं छुट्टियों में गाँव गयी तब मेरे दादा-दादी ने मुझे जप करते हे देखा तो वे कहने लगेः

 "हमारी इतनी उम्र हो गयी है फिर भी हमें इस सच्ची कमाई का पता नहीं है

 और इस नन्हीं बालिका को देखो,

अभी से इसे सच्ची कमाई के संस्कार मिले हैं।

धन्य हैं बापू जी के 'बाल संस्कार केन्द्र' !

जब बापू जी आयेंगे तब हम भी उनसे जरूर मंत्रदीक्षा लेंगे।'




इस तरह हमारे परिवार में सभी का जीवन बापू जी ने परिवर्तित कर दिया।"



- शालू सिंह, वरली (मुंबई)


वाह बापू वाह......



न जाने कितनो की ज़िन्दगी बना दी तुमने मेरे साईं........

तुम्हारी जय हो..मेरे प्रभु.......

हरी....हरी.....बोल

hariommmmmmmmmm


(note}}}} isme balika ka photho na milne ki vajah se badla hua photho lagaya ja rha hai..)

सोमवार, 3 जनवरी 2011

पेप्सी बोली विदेश से मैं आयी हूँ, साथ मौत को लायी हूँ।






लहर नहीं ज़हर हूँ मैं......




पेप्सी बोली कोका कोला !
भारत का इन्सान है भोला।
विदेश से मैं आयी हूँ,
साथ मौत को लायी हूँ।

लहर नहीं ज़हर हूँ मैं,
गुर्दों पर बढ़ता कहर हूँ मैं।
मेरी पी.एच. दो पॉइन्ट सात,
मुझ में गिर कर गल जायें दाँत।


जिंक आर्सेनिक लेड हूँ मैं,
काटे आँतों को वो ब्लेड हूँ मैं।
मुझसे बढ़ती एसिडिटी,
फिर क्यों पीते भैया-दीदी ?


ऐसी मेरी कहानी है,
मुझसे अच्छा तो पानी है।
दूध दवा है, दूध दुआ है,
मैं जहरीला पानी हूँ।

हाँ दूध मुझसे सस्ता है,
फिर पीकर मुझको क्यों मरता है ?
540 करोड़ कमाती हूँ,
विदेश में ले जाती हूँ।




शिव ने भी न जहर उतारा,
कभी अपने कण्ठ के नीचे।
तुम मूर्ख नादान हो यारो !
पड़े हुए हो मेरे पीछे।

देखो इन्सां लालच में अंधा,
बना लिया है मुझको धंधा।
मैं पहुँची हूँ आज वहाँ पर,
पीने का नहीं पानी जहाँ पर।

छोड़ो नकल अब अकल से जीयो,
जो कुछ पीना संभल के पीयो।
इतना रखना अब तुम ध्यान,
घर आयें जब मेहमान।

इतनी तो रस्म निभाना,
उनको भी कुछ कस्म दिलाना।
दूध जूस गाजर रस पीना,
डाल कर छाछ में जीरा पुदीना।

अनानास आम का अमृत,
बेदाना बेलफल का शरबत।
स्वास्थ्यवर्धक नींबू का पानी,
जिसका नहीं है कोई सानी।

तुम भी पीना और पिलाना,
पेप्सी अब नहीं घर लाना।
अब तो समझो मेरे बाप,
मेरे बचे स्टॉक से करो टॉयलेट साफ।

नहीं तो होगा वो अंजाम,
कर दूँगी मैं काम तमाम।



(लेखकः गिरीश कुमार जोशी, उदयपुर (राज.)
(इसको हर कोई छपा सकता है।)
स्रोतः ऋषि प्रसाद जनवरी 2008.
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ5

शनिवार, 1 जनवरी 2011

हैप्पी न्यू इयर ?????????





हैप्पी न्यू इयर ?????????

यहा  पधारे.....

http://www.youtube.com/watch?v=7fiHVgA87a4