bapu


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बुधवार, 29 दिसंबर 2010

सच्चे सत्संगी के चार लक्षण

श्री आसारामजी बापू ने सच्चे सत्संगी के लक्षण पर प्रकाश डालते हुए कहा
 की सच्चे सत्संगी मे ये चार लक्षण होते है



पहला लक्षण ये मिलता है की सच्चा सत्संगी हमेशा पीछे बैठता है
कभी उसको आग्रह नहीं रहता है की मै आगे बैठू


सच्चे सत्संगी को फरियाद नहीं रहता है जहा उसको जगह मिले वाहा
 वह बैठ कर सत्संग का पान करता है


दूसरा लक्षण सत्संगी का यह होता है की सच्चा सत्संगी हमेशा दूसरों को मान  देता है
और खुद  अमानी बनकर रहता है
वह कभी भी मान की इच्छा नहीं करता है


तीसरा लक्षण सच्चे सत्संगी का यह होता है
की वह सदा दूसरों को सत्संग की जगह पर स्थान देता है



चौथा लक्षण ये बताया की सत्संगी सेवा मे रूचि रखता है
जो सेवा उसे मिल जाए वह करता है




बापू  ने बताया की हम सबको अपने जीवन का निरिक्षण करना चाहिए

हममे कितने सच्चे सत्संगी के लक्षण है इसका निरिक्षण करना चाहिए


उड़िया बाबा कहते थे की सच्ची भक्ति आपने जीवन का निरिक्षण करना
जीवन मे दोषों को हटाने के लिए सदा प्रयत्न करना चाहिए




जीवन मे कितने ही मुसीबत आये पर एक साकी याद रखनी चाहिए की “ होता है
होता है ऐसा भी होता है “



सत्संग के अंत मे इश्वर के भजन मे सभी साधक एवं भक्त सारे दुनिया की दुनियादारी भूलकर
इश्वर की भक्ति मे सरावोर हो गए और आनद का माहोल बन गया था 


साधो साधो.....
जपते रहे तेरा नाम ...जय बापू आशाराम...
hariommmmmm

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

ये तो ‘हरि ॐ’ का फल है

नारद जी ने बताया मैं तो एक गरीब दासी का बेटा था..
वो भी रोजाने काम में जाती, कभी काम मिले , कभी ना मिले…..


चातुर्मास के दिनों में किसी संत महापुरुष की कथा में किसी सेठ ने मेरी माँ को कहा की
 यहाँ कथा के मैदान में झाड़ू बुहारी लगाया कर,
का छिटकाव किया कर..तेरे को रोजी देंगे रोज की..



मैं 5 साल का था.. मेरा बाप तो मर गया था…
भी अपने माँ के साथ गया..मेरी माँ तो काम काज करे…

मैं सत्संग में बैठु..संत का दर्शन करू…
 अब समझू तो नहीं..लेकिन संत की वाणी मेरे कान से टकराए…


कान पवित्र हुए.. धीरे धीरे अच्छा लगने लगा …
फिर कीर्तन में मेरे को मजा आने लगा…
फिर कीर्तन करते करते , भगवान का नाम जपने से मेरे रक्त के कण पवित्र हुए…
ऐसे करते करते मेरे को सत्संग में रूचि हुयी…



संत जब जा रहे थे तो मैंने हाथ जोड़े…
बाबा मेरे को तो अब घर में अच्छा नहीं लगेगा
मैं तो आप के साथ चलू…????



बाबा ने कहा, ‘अभी तू बच्चा है.. घर में ही रहो..
घर में ही रहे के भजन करो..’
बोले, मेरी माँ टोकेगी…



बाबा बोले, ‘जो भगवान के रस्ते जाते, उन को मदद करनेवाले को पुण्य होता ..
लेकिन भगवान के रस्ते जानेवाले को जो रोकते-टोकते उन को पाप लगता..


ऐसे रोकने-टोकने वालो की भगवान बुध्दी बदल देते या तो भगवान अपने चरणों में बुला लेते है…
तेरी माँ की बुध्दी बदलेगी या तो तेरी माँ को भगवान अपने धाम में बुला लेंगे…’



कुछ दिनों में मेरी माँ टोकने लगी…
उस को तो साप ने काटा और वो मर गयी..
मेरी माँ की अंतेष्टि पंचों ने मकान बेच के कर लिया…


मैं तो चलता बना…दिशा का तो पता नहीं था…
उत्तर की तरफ चलता गया…
चलते चलते कही गाव आये, कई तहेसिल आये…
तालाब आये..नदिया आये..किसी से भिक्षा मांग के खा लेता..

संतो ने नाम रख दिया – ‘हरी दास’..
हरी हरी ..हे गोविन्द..हरी हरी …बोलता..कुछ और पता नहीं था…



ऐसे करते करते गंगा किनारे पहुंचा..
गंगाजी में नहा धो के थोडा पीपल के पेड़ के निचे बैठा ….
भगवान मैं कुछ नहीं जानता हूँ , लेकिन तुम्हारा हूँ…

हे गोविन्द ..हे गोपाल..हरी.. हरी…ऐसे बोलता..
मेरे को पता ही नहीं था की हरी हरी बोलने से भगवान पाप हर लेते…
’हरि ॐ ‘ बोलने से भगवान अपना ज्ञान भरते…..



मैं तो प्रभु को पुकारता …हे प्रभु …कब मिलोगे….
हरि ssssssss ओम्म्म sssssssssss

ऐसे करते करते मेरा मन शांत होने लगा… प्रकाश दिखने लगा..
आनंद भी आया, और भगवान की तड़प भी जगी…

आकाशवाणी हुयी की, ‘पुत्र अभी तू मेरा दर्शन नहीं कर सकता…
मेरे दर्शन का प्रभाव तू नहीं झेल सकेगा…


लेकिन अगले जनम में तू मेरा खास महान संत बनेगा..
‘नारदजी’ तेरा नाम पडेगा.. ब्रम्हा के यहाँ तेरा जन्म होगा..
और देश-देशांतर में , लोक-लोकांतर में तेरी अ-बाधित गति होगी …!’

कहा तो मैं गरीब दासी का बेटा..और कहा नारदजी बना !


भगवान श्रीकृष्ण के सभा में जाऊं तो भगवान श्रीकृष्ण उठ कर मेरा स्वागत करते…
 ये संतों के दर्शन का और धर्म का फल नहीं तो काय का फल है?



ये किस का फल है? बी. टेक का फल है या एम् डी होने का फल है?
पी एच डी का फल हा या डी .लिट. अथवा एम् बी बी एस होने का फल है?…



ये तो ‘हरि ॐ’ का फल है !!!!





मेरे को भी जो फल मिला वो गुरू के प्रसाद का फल मिला है…



तो नारद जी बोलते है – की महान पुरुषों का संग, सत्संग,
जप-ध्यान ये ही धर्म मनुष्य को महान बना देता है ….



भरद्वाज ऋषि कहेते की तमो गुण का ह्रास कर के सत्व गुण बढाए वो धर्म है..
भगवान व्यास जी कहेते की अंतकरण की शुध्दी के जो भी साधन कर्म है -


जप ध्यान करना,
-प्यासे को पानी देना,
- भूखे को रोटी देना,
- बीमार को स्वास्थ्य का मार्ग बताना,
- भूले हुए को रास्ता बताना,
-  हारे को हिम्मत देना..

-अ-भक्त को  भक्ति देना,
- भक्त को मन्त्र दीक्षा दिलाना
- ये सब धर्म कार्य है…
जिस से अंतकरण शुध्द हो जाए वो सब धर्म है .


शिव जी कहेते भैरवी राग सुनना स्वास्थ्य के लिए वरदान है..
ऐसे राग पहाड़ी ने कई दिल दिमाग को आल्हादित आनंदित कर दिया है..
सुरेश बापजी राग पहाड़ी सुनायेंगे:-

जोगी रे क्या जादू है तुम्हारे ज्ञान में …


बापू जी के सत्संग से......
hariommmmmmmmmm

वाह मेरे बापू वाह ....
क्या ज्ञान देते हो .....
सब हमारे लिए करते हो....
पर हम नादान है,
  मुर्ख है,



आप इतना समजाते हो फिर भी हम  समजते नही है
आपकी जय हो मेरे बापू....
तेरी लीला बड़ी है न्यारी....उसे समजे कोई अंतर्यामी

जोगी का जो साथ मिला है, डर अब हम को कैसा
अब तो करना वही है   हम को जोगी कहे है वैसा
जोगी रे क्या जादू है तुम्हारे ज्ञान में..



जय हो....

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

प्रभु सेवक को भूल न जाना.....

1.तेरी माया प्रबल बड़ी है, जल फैलाए चुपचाप खड़ी है ।
 अगर मैं उसे पहचान न पाऊँ, जाल में उसके फँसता जाऊँ,
 तुम आकर के मुझे बचाना,प्रभु सेवक को भूल न जाना ।

2.कामदेव जब बन चलाए, प्रणय गीत जब मुझे लुभाए,
  काम-कामिनी मुझे रिझाए, भोग-विलास में मुझे फँसाए,
  तुम काम पाश से मुझे बचाना, प्रभु सेवक को भूल न जाना ।


3.कल की फाँस गले पड़ जाए, यमराज जब दर्श दिखाए,
 यमदूत घोर यमदंड चलाए, मन में भय और शोक बढ़ाए ,
  यम की फाँस से मुझे बचाना, प्रभु सेवक को भूल न जाना ।



4.मोह-ममता जब मुझे सताए, धन का लोभ मुझे लग जाए,
मान-प्रतिष्ठा अभिमान बढ़ाए, ईष्या द्वेष का घुन लग जाए,
विषय-विकारों से मुझे बचाना, प्रभु सेवक को भूल न जाना ।




5.कर्म-संस्कार प्रबल हो जाएँ, गलत राह पर मान ले जाए,
क्रोध मेरा विवेक भुलाए, आलस्य-प्रमाद मुझे भटकाए ।

चरणों में मेरे मन को लगाना, बापू  सेवक को भूल न जाना

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

(bhajan)मैली चादर ओडके कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ

१.मैली चादर ओडके कैसे द्वार तुम्हारे आऊ




हे पावन परमेश्वर मे मन ही मन शरमाऊँ

मैली चादर ओडके कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ.....




२.तुने मुझको जग में भेजा निर्मल देकर काया

इस संसार में आकर मैंने इसको दाग लगाया

जनम जनम की मैली चादर कैसे दाग छुडाऊ

मैली चादर ओडके कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ.....








३.निर्मल वाणी पाकर तुझसे नाम ना तेरा गाया

नैन मून्धकर हे परमेश्वर कभी ना तुझको ध्याया

मन वीणा की तारें टूटी अब क्या गीत सुनाऊँ

मैली चादर ओडके कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ.....









४.इन पैरों से चल कर तेरे मंदिर कभी ना आया

जहाँ जहाँ हो पूजा तेरी कभी ना सीस झुकाया



हे हरिहर मैं हार के आया अब क्या हार चढ़ाऊ

मैली चादर ओडके कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ.....

रविवार, 19 दिसंबर 2010

निंदको को इशारा

                                 निंदको को इशारा


                            
1.अरे संत के निंदको
 अन्न समजकर खाते हो तुम विष्टा




 कोई "आजतक" न तोड़ पाया
  हम गुरुभक्तो की निष्ठा





2.तुम पैदा कर नही सकते
  हमारे मन में भ्रांति
 "बापूजी" से हमे मिला है

 आनंद और शास्वत शांति



 हम मौज में है,
 क्यों आयेंगे तुम्हारी बातो में
 तुम सदा रहे अशांत,
 चैन की नींद नही रातो में....



कलम चली स्वार्थ से सदा,
स्वार्थ से केमरा तुम्हारा चला


मिडिया हमारा "ऋषि-प्रसाद"

सबका मंगल सबका भला



तू जब भी अपना मुह है खोलता
छोटे मुह बड़ी बात है बोलता

पर "कमल" बच्चा है..... अपने बापू जी का
झूठ नही बोलता.....




यदि तुम बाज नही आये
अब अपनी काली करतूतों से....
एक दिन अपना सर पिटोगे ....
अपने ही जूतों से.....



from manav
amravati (mah.)

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

किसी पे मेरा विश्वास नहीं,

 संसार के दो विभाग कर लो:- एक तो वोह है जो
   सारे मकान अपने नहीं हैं,साड़ी कोठियाँ अपनी नहीं हैं,
         सारे दुकान अपने नहीं हैं…
        २-५ मकान्,एक आठ दुकान अपनी है…


तो दो विभाग हो गए -

एक वोह जो अपना नहीं है,

वोह तो बहुत कुछ अपना नहीं है,

सारी गाड़ियाँ अपनी नहीं,

जहाज अपने नहीं हैं एक भी…
तो जो अपना नहीं है एक विभाग हो गया,

और जिसको हम अपना मानते हैं,वोह थोडा सा है…जो अपना नहीं है

वोह तो नहीं है, लेकिन जो अपना है, वोह भी रहेगा क्या ?
छोड़ना नहीं पड़ेगा क्या? जो अपना है,

वोह दूसरा अपना बने की नही बने
इसमें शंका है, लेकिन जो अपना है वोह छूटेगा की नही छूटेगा?

शरीर भी छोड़ना पड़ेगा,पत्नी भी छोड़नी पडेगी,

तो मकान साथ में ले जाएगा? पैसे साथ में ले जाएगा?

जो अपना हम सदा रख नहीं सकते, उसके लिए हेरा-फेरी करना,
बेईमानी करना,अधर्म करना,बड़ा भारी, भारी में भारी हानि है…

अपने पसीने का भी आदमी खा नहीं सकता, दाता ने इतना दिया है ..

लेकिन हाय हाय हाय, खपे खपे खपे खपे…

असत, जड़ और दुःख रुप शरीर और संसार से इतना अपने को प्रभावित कर दिया

की सत् चित, और आनंद ईश्वर ढका सा रह गया…

सब कुछ होने के बाद भी परेशानियाँ नहीं मिटी,

दुःख नहीं मिटे, भय नहीं मिटा और ईश्वर नहीं मिले

जिसको छोड़ नहीं सकते,वोह मिले नहीं,

और जिसको रख नहीं सकते,

उसके लिए कूर-कपट करके नरकों का रास्ता बना लिया…

राजा अज्ज अजगर बन गया, राजा नृग किरकिट बन गया,राजा भरत हिरन बन गया …

धन मिलने से आदमी सूखी होता है,इस में मेरा विश्वास नहीं,

यह बात सच्ची नहीं…

यूरोप के लेखक ने पुस्तक लिखी की पिछले सौ साल में कई धनवान थे

और किसी न किसी रोग से ग्रस्त थे …

करूणानिधि को केवल लोगों कि लानत नहीं पहुंची,अन्दर का चमत्कार भी मिला है,

तबियत और मन मानसिक शक्ति हारने वाले ने थोड़ी हर ली है,

तभी थोडा पेश आया है…जो सत्, चित और आनंद रुप है, वोह सब का आत्मा होकर बैठा है ..

और उनकी आत्मा को ठेस पहुंचाने कि जो गलती किया करूणानिधि ने ,

उस से उनकी मानसिकता और स्वास्थ्य को ठेस पहुंची है…चाहे स्वीकार करे चाहे न करे,सच्ची बात है…


जो सत् है, चित है, आनंद है,उसमें आस्था रखता है
जो असत है, जड़ है, दुःख रुप है, उसका सदुपयोग करता है …


भोग कि वासना बढ़ेगी,संग्रह की आग,खपे खपे खपे ,धन तो वहीँ पड़ा रह जाएगा,

अनिद्रा और डायबिटीज़ पकड़ लेंगे

हार्ट-अटैक और हाई बी.पी .

लो बी.पी के शिकार हो जायेंगे…

बहुत पसार मत करो,कर थोडे कि आश,
बहुत पसार जिन किया,वोह भी गए निराश…

जो छोड़ के मरना है, जो अपना नहीं होने वाला है,उसके पच मरे जा रहे हैं,गहने और चाहिए,सारियां और चाहिए,

मकान और चाहिऐ,पैसा और चाहिए …

इस से सच्चा सुख धधक जाएगा और नकली सुख कि लालच में जीवन खतम हो जाएगा…

घर में जो भोजन मिले,खा लो,जो कपड़ा मिले,अंग ढक लो,जहाँ नींद आये सो जाओ,

अभ्यास करो अपने सत् स्वभाव का, तन स्वभाव का, आनंद स्वभाव का

आप खुश-हाल हो जायेंगे,निहाल हो जायेंगे…

आपकी सात पिढियाँ तर जायेंगी…

आप का अकलमता ऐसा उपजेगा कि इंद्र का वैभव भी तुच्छ हो जाएगा॥

सदा दिवाली संत कि,आठों पहर आनंद,
अकलमता कोई उपजा, गिने इंद्र को रुंक…

तुम्हारे में वोह ताक़त है कि धरती के राजा जिसके आगे बौने हो जाते हैं,

ऐसा इंद्र तुम्हारे आगे बौना हो जाये,
ऐसा सच्चिदानंद का सुख पाने कि ताक़त तुम्हारे में है…
और उस ताकत का उपयोग नहीं करते,


फिर भी वोह साथ नहीं छोड़ती …
शरीर साथ देगा नहीं और परमात्मा साथ छोडेगा नहीं …
मरने के बाद शरीर और सम्पदा जिसको अपनी माना,

वोह नहीं चलेगा साथ में,
लेकिन सछिदानंद साथ छोडेगा नहीं…
जो कभी साथ न छोडे,

उसे बोलते हैं परमात्मा,और जो सदा साथ न रहे,
उसे कहते हैं संसार,जो अपना नहीं है,



(इसलिये)
बहुत पसरा मत करो, कर थोडे कि आश,
बहुत पसार जिन किया, वोह भी गए निराश…

पड़ा रहेगा माल खज़ाना,छोड़ त्रीय सूत जाना है,
कर सत्संग अभी से प्यारे,नहीं तो फिर पछताना है॥

सत्संग से जो विवेक जगता है,सत्संग से जो सच्चे सुख के द्वार खुलते हैं,
वोह दुनिया कि किसी सम्पदा,किसी विद्या से नहीं खुल सकते




कर नसिबां वाले सत्संग दो घड़ियाँ…

एक घड़ी,आधी घड़ी,आधी में पुनि आध
तुलसी संगत साध कि, हरे कोटी अपराध…


hariommmmmmmmmmm

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

अहंकार अंधा रस है

प्रभु ही हमारे हितकारी हैं। उनके बिना कुछ नहीं है।

पैदा होने से पूर्व मां के शरीर में बच्चे के लिए दूध की व्यवस्था भी वही करते हैं।

मनुष्य भले ही पकवान व बिस्तर की व्यवस्था कर ले,

लेकिन भूख एवं नींद भगवान की ही देन है।

 इनके बिना मनुष्य द्वारा बनाई गई वस्तुओं का कोई मूल्य नहीं है।

 रावण के पास भी कई योजनाएं थी। जिनमें समुद्र के पानी को मीठा करना,

जले चूल्हे से धुआं गायब करना तथा चंद्रमा के कलंक को दूर करना शामिल थी,

लेकिन उसके अहंकार ने ऐसा नहीं होने दिया।

 अहंकार अंधा रस है

 जो व्यक्ति को जल्द ही नीचे गिरा देता है।

मनुष्य को प्रतिस्पर्धी होना चाहिए, लेकिन इसका उद्देश्य दूसरों की भलाई एवं एकाग्रता का हो।

  बापू  जी  ने ध्यान पर जोर देते हुए कहा कि इससे बुद्धि का विकास होता है और सफलता मिलती है।

आध्यात्मिक शक्ति सबसे बड़ी है, इसलिए इसकी तरफ बढ़ना जरूरी है।
 
 गुरु से मंत्र दीक्षा अवश्य लें। इससे कई रोग दूर होते हैं और मन भी प्रसन्न रहता है।
 
उन्होंने सत्संग में महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार को रोकने की भी अपील की।
 
 बापू ने कहा  कि परिवार में महिलाओं को कोसा जाना गलत है।
 
 कोसे जाने वाली महिला के गुणों का भी बखान होना चाहिए।
 
 जिस प्रकार अंधकार को सूर्य दूर करता है,
 
वैसे ही महिलाएं परिवार के अंधकार को मिटाकर उजाला करती हैं।
 
सत्संग परवचन : सीकर  (राज.)05/12/२०१०
 
hariommmmmmmm

सोमवार, 6 दिसंबर 2010

ये सत्संग वत्संग क्या होता है ? (अनुभव )


दिनांक :  अगस्त २००१ को मेरे पास मोबाइल पर बार बार फोन  रहा था |

उस समय मैं सत्संग- पंडाल में पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी का रसपान कर रहा था |


सत्संग के कारण मैं मोबाइल बंद कर देता था | 

उसके बाद आश्रम में मेरे लिए फोन आया | 

वहां से उन्हें बताया गया कि मैं सत्संग में बैठा हूं, अभी बात नहीं हो सकती | 

फिर उन्होंने पंडाल कार्यालय में भी फोन किया | वहां से भी यही उत्तर मिला |

अगले दिन उन्होंने (कैबिनेट गृह सचिव भारत सरकार मोबाइल पर फोन करके 

मुझ पर नाराज होते हुए और कहा :

 आप मेरा नंबर देखकर भी मुझसे बात नहीं कर रहे थे |

मैंने उनको समझाते हुए कहा : ‘में बापूजी का सत्संग सुन रहा था |

तो वे बोले क्या आप दो मिनट सत्संग छोड़कर मुझसे बात नहीं कर सकते थे |

 मैंने कहा : में अभी अवकाश पर हूं 

और सत्संग छोड़कर आपसे बात नहीं कर सकता |

’ तो वे बिगड़कर बोले : ‘सत्संग वत्संग क्या होता है 

अभी दो मिनट में ट्रान्सफर हो जायेगा तो निकल जायेगा सत्संग वत्संग |

 इस घटना के करीब चार घंटे बाद मैंने एक अधिकारी को फोन करके कहा 

मेरे साथ ऐसा हुआ है, आप उन्हें थोड़ा समझाएँ,

 तो उन्होंने बताया कि अभी बात नहीं कर सकता, 

क्योंकि उनका शास्त्रीभवन के पास एक्सीडेंट हो गया है 

और अभी वे साहब सफदरजंग हॉस्पिटल में भर्ती हैं | 

देखो, बड़े साहब मेरी बदली करवाने की धमकी दे रहे थे,

 अब वे अपनी बदली घर से अस्पताल कर चुके थे |

  सत्संग  से  क्या  लाभ होता  है इसे  अगर हमारे अधिकारी  नेता समझ सकें तो 


देश कितना समृद्ध और खुशहाल हो जाय और वे भी कितनी उन्नति करें |

                                                     श्री . केसिंह (आई ..एस )
                                                एस.डी.ऍम. (सब डिविजनल मजिस्ट्रेट )

हरिओम....
वाह मेरे साईं वाह..
जय हो....


शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

वही होता है जो मंजूरे आसाराम बापू होता है



सदगुरू देव* की कृपा से करोडो साधक चुप्पी साधकर बैठे है


और कुप्रचारक और सत्ताधीश लोग ये समझ रहे है कि हम ऐसे ही चुप रहेगे ,



लेकिन अब और नहीं इन षड्यंत्रकारियो को इन्ही की भाषा ही समझानी पड़ेगी


बहुत हो चूका ध्यान भजन , अब करना पड़ेगा शत्रु मर्दन ,


 तोड़ फोड़ कार्येक्रम हम भी कर सकते है ,
बस अब सब्र का बाँध टूट चूका है


 और अब लाइन
लगने वाली है बापू के भगत सिंह जैसे साधको कि ,

 और ये भगत सिंह
इतनी आसानी से फाँसी पर नहीं झूलने वाले ,

 षड्यंत्रकारियो को लगाई जाएगी फाँसी ,


 पहले भी हमारे आश्रम के भाइयो पर बड़ा जुल्म हुआ है

और हम गुंगो की तरह चुप बैठे रहे

पर अब हमे प्रशासन की मदद की भी जरूरत नहीं ,

 इन राक्षसों को सीधे ही आइना दिखाने की बारी आ गयी है ,



 माला के साथ भाला उठाने का वक्त आ गया है ,

 *मुधई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है वही होता है जो मंजूरे आसाराम बापू होता है*


क्या जब तक बापू जी आज्ञा नहीं करेंगे तब तक हम इस जुल्म को इसी प्रकार सहते रहेंगे ,

 अपने गुरुदेव के आश्रमों को ऐसे ही टूटते हुए देखते रहेंगे ,



नहीं नहीं नहीं हर एक साधक बापू जी का अपने आप में अत्यंत समर्थ है

पर फिर भी श्रद्धा ने गुरु आज्ञा से बांध रखा है पर ध्यान रखना भाइयो और बहनों

बापू जी कभी भी आज्ञा नहीं देंगे सडको पर उतरने की और विरोध करने की,,



वे भगवान है................................



 वे भगवान है

उनका हिरदे करूणामये है

 ये निर्णय अब हमे स्वयं लेना है की हम ने आज तक सत्संग

और सदगुरु का कितना आदर करना सीखा है ,

साधक का विवेक इश्वेर प्राप्ति के लिए है



पर जिन सदगुरु से इश्वर की अनुभूति होगी

उन पर ही कोई लांछन लगाये वो भी सुनियोजित षड्यंत्र के तहत तो फिर चुप बैठना नपुंसकता नहीं है

 क्या ?,

किसी को तो पहल करनी होगी ,

किसी को तो आगे आना ही होगा ,



सनातन धरम के पथ पर कोई शास्त्र

भयभीत होना नहीं सिखाता फिर क्यों साधक शांत है

आईये एक जुट होने का समय है ,


अपने अपने क्षेत्रो में एक नया संघ का गठन कीजिये

 और मिलकर इस षड्यंत्रकारी

कुप्रचार और मीडिया के घिनोने दोगुले चरित्र को देश के जनता के सामने लाईये



,आपकी परीक्षा का समय है ,भारत करवट ले रहा है विश्वगुरु बनने के लिए ,

अपने आत्मा की शक्ति को जगाओ और
 थोडा सा अब इस परिस्थिति पर भी गहराई से मनन करो

वर्ना हम अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पायेगे ,

हमारे शरीर के पिता को कोई गाली दे

 तब तो हम किसी आज्ञा का इंतज़ार नहीं करते बस अपना आपा खो बैठते है और


भगवत्स्वरूप हमारे सच्चे पिता ,हमारे सदगुरुदेव आसारामजी बापू ,

इस युग के वो संत जिनके हृदय में भगवान ने प्रकट होने का सच्चा

अहसास पुरे विश्व को बार बार करवाया है ,,,

हम उनकी आज्ञा का इंतज़ार करते है कि बापू जी बोलेंगे तो ही



 विरोध करेंगे क्या ये सदगुरु से सबसे बड़ा धोखा नहीं है ,


अपनी संस्कृति से और अपनी गुरुभक्ति से गद्दारी नहीं है ,


क्या ? आने वाली पीडी हमारे ऊपर  प्रश्नचिन्ह नहीं लगाएगी कि

 सनातन धर्म के अनुयायी अब डरपोक हो चुके है

 कौन हम से प्रेरणा  लेगा ?


 हा शोक हा शोक अरे अपने इतिहास को ही देख लो ,
अपने क्या पुरे विश्व के धर्मो के इतिहास को उठा लो कही भी किसी भी धर्म ने इतना जुल्म कभी नहीं सहा

जितना हम लोगो ने सहा क्या ये सहिष्णुता है ???,,


 नहीं समय रहते आवाज़ न उठाने का प्रतिफल है,
कायरता को हम कब तक सहिष्णुता का जामा पहना कर अपनी कमजोरी को
छिपाते रहेंगे,


भाइयो सहिष्णुता का अर्थ ये नहीं है कि सदा चुप ही रहो चाहे कोई
आपके देश ,संस्कृति ,गुरुजन और राष्ट्रीयता का बलात्कार हनन करता रहे ,


 मुझे याद है सत्संग में *एक बार बापू जी ने कहा था कि


 मेरे सदगुरु लीलाशाह जी के बारे में कोई अपशब्द बोल कर तो देखे

अगर उसको दिन में तारे न दिखा दू तो

 मै अपने गुरु का सत्शिष्ये नहीं*


 क्या हम लोगो में कभी ऐसी गुरुभक्ति नहीं आएगी ,

भाइयो और बहनों जितनी भी शक्ति है उतनी ही बहुत है पर उसका उपयोग करने की पहल
तो हो,,


 वही नहीं हो रही है आप सब विश्व के साधको से मेरा निवेदन है कि अब तो
शुरुआत करे


 अगर हमारे देश के ब्रह्मज्ञानी संतो का भारत में आदर नहीं होगा तो
फिर भारत में किसी का भी आदर नहीं होने देंगे हमारे साथ पूरा विश्व
है,सनातान्धर्माचर्ये है ,



और तो क्या कहे भगवान हमारे साथ है हम विजयी होंगे.
आगे के कार्येक्रम की रूपरेखा जल्दी ही आपके सामने होगी आप तैयार रहे!!!!!



आईये इस नए जयघोष कि गूंज पुरे विश्व वासियों तक पहुंचाए ,

 अगर आप उचित समझे तो इस नारे को अपनी सहमति प्रदान करके

सनातनधर्म का गौरव बढाये



*जय संत - जय भारत *

हरी हरी ॐ

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देवेंदर शर्मा
जी.आई.आई.टी ,दिल्ली