bapu


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शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

गुरुवर तुम्हें कैसे रिझाएँ हम

गुरुवर तुम्हें कैसे रिझाएँ हम

तड़पती रूह को तुमसे कैसे मिलाएँ हम

उठते हुए जज्बातों को क्या समझाएँ हम

बस यही सोचते है की तुम्हें कैसे रिझाएँ हम



न प्रेम भरा विश्वास है, न भाव भरा अहसास ही है

तेरी याद में पलके भीगी रहे, न वो अश्कों की बरसात ही है

न पुण्य कर्म ही संचित है, न कर सकें कुछ अर्पित है

चरणों में तुम्हारे आकर के क्या भेंट चढ़ाएँ हम



उपकार है तुमने इतने किए जिसका कोई हिसाब नहीं

तेरी रहमत को हम हम लिख पाएँ ऐसा कोई अल्फांज नहीं

हम तेरे लिए कुछ कर पाएँ इतनी भी कोई औकात नहीं

कर्ज तेरे उपकारों का फिर कैसे चुकाएँ हम



हर कर्म में तेरी पूजा नहीं, हर सोच में तेरी याद नहीं

श्वासों की ये बगिया प्रभु तेरे नाम से आबाद नहीं

हम रोएँ आपने कर्मों पर कोई ऐसा पश्चात्ताप नहीं

अब तू ही बता मेरे प्रभु तुझे कैसे मनाएँ हम



तू पाक मसीहा दुनिया में, हम दाग भरी इक चादर है

तू रहमतों का सैलाब प्रभु, हम इक खाली गागर है

हम बिछड़ी होई इक धारा और तू ही हमारा सागर है

पर फिर भी तमन्ना है दिल में तुझसे मिल जाएँ हम

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

कालिया नाग

बांके बिहारी लाल के जीवन में आनंद था ..

लेकिन पग-पग पर विपदा भी आई ..

तो कभी ऐसा नही सोचना कि,भगवान के रास्ते जाते को दुख आते ….

जहाँ दुःख ना आते ऐसा कोई रास्ता नही,

ऐसी कोई जगह नही …..


अगर कहीं दुःख नही आते हैं तो वो है समझदारी !!…
दुःख और विघ्न को भगवान कृष्ण के जीवन में पग-पग पे आए ….
जिन के जनम के भय से माता पिता को जेल में डाल दिया गया …..


जनमते ही पराये घर लिवाए गए ….
6 दिन के बाद पूतना (राक्षसी) आई ..
पूतना क्या है? “वासना” रूपी राक्षसी है …


जो भले भले जपी तपियों को मार गिराती हैं ……
पूतना वासना रूपी विष का पान कराने के बाद आया छटकासुर ….


कितने कितने विजन आए फिर भी मधु-मय ,
ज्ञान-मय कृष्ण विचलित नहीं हुए ….
ये भगवान का भगवतिय-पना हैं …
आयु के 17 साल तक नि-हत्ये होते हुए भी दैत्यों से भिड़ते रहें….
दूसरो को बचाते रहें हैं …


कंस मामा के साजिश से भिड़ते रहे…

ऐसे नहीं की कृष्ण के बाल्यकाल में मख्खन मिस्रियां ही थी ,

उन के तो जीवन में पग-पग पर विघ्न थे..


जो विघ्न बढ़ा और परिस्थितियों को सत्य मानकर दब जाते ,
वो संसार संग्राम में हार जाता …..
दुःख-सुख ,विघ्न-बाधा तो आने जाने वाला हैं…


कालिया नाग जैसा विषधर संसार सर्प है,

डंख मारे तो मर जाए ऐसा भगवान कृष्ण नहीं सिखाते ….

संसार का राग- द्वेष डंख मारने आया तो ऐसे संसार से बचाना हो तो दुःख-सुख के,

राग-द्वेष के सर पर नृत्य करो ….!(ऐसा श्रीकृष्ण भगवान सिखाते हैं..)

सुखं वा यदि वा दुखं ..
सभी परिस्थितियों में सम रहेना ..
संसार में रहेते तो कभी निंदा आयी, कभी वाहवाही आयी …
जिस की निंदा या वाहवाही हुयी वो मैं नहीं हूँ .. मैं नित्य हूँ ….!(ऐसा माने..)

आप भी इस प्रकार की समझ बढ़ाए ..

हो हो के मिट जाने वाले संसार से अमिट के”मैं स्वरूप”का कुछ भी नहीं बिगड़ता …

कृष्ण विपदाओं में भी बंसी बजाते रहेते …

मधुर-ता का दान करते रहेते …सदा प्रेम का दान करते ,

रस का नित्य नवीन पान करते और कराते …

ऐसे कृष्ण की स्मरति कर के,गुरुदेव ने दिए ज्ञान कि स्मृति कर के अपने जीवन और कर्म को दिव्य बनाये ..


समाज में दुःख क्यों हैं?
समाज में कंस (रूपी वृत्ति),काल,और अज्ञान दुःख देता हैं …


(कंस प्रवृत्ति से बचने के लिए )आप शोषक ना बनो और ना दूसरो को शोषित करो

(दूषित काल के चक्र से बचने के लिए )अशुद्ध काल की चपेट में ना आए और

ना ही दूसरो को लाये …

(अज्ञान से बचने के लिए) दुसरे का अज्ञान बढाए नहीं ,

और ख़ुद का अज्ञान बढ़ने नहीं देना …

अज्ञान मिटाने का प्रयत्न करे

अज्ञान कैसे मिटाए?

अज्ञान को मिटाने के लिए बाबा नंद का जैसा शुध्द अन्तकरण ,

देवकी और यशोदा जैसी भगवान को यश देनेवाली बुध्दी बनाए ….

हर परिस्थिति का यश देते भगवान को — वाह प्रभु , तेरी करूणा कृपा !

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

गुरु प्रार्थना...with (हिन्दी अर्थ)

गुरूब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरूर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।

ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामलं गुरोः पदम्।
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा।।

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।।


ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं,
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरूं तं नमामि ।।


हिन्दी में अर्थ....


1.गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं।

गुरूदेव ही शिव हैं तथा गुरूदेव ही

साक्षात् साकार स्वरूप आदिब्रह्म हैं।

मैं उन्हीं गुरूदेव के नमस्कार करता हूँ।


2.ध्यान का आधार गुरू की मूरत है,

पूजा का आधार गुरू के श्रीचरण हैं,

गुरूदेव के श्रीमुख से निकले हुए वचन मंत्र के आधार हैं

तथा गुरू की कृपा ही मोक्ष का द्वार है।

3.जो सारे ब्रह्माण्ड में जड़ और चेतन सबमें व्याप्त हैं,
उन परम पिता के श्री चरणों को देखकर मैं उनको नमस्कार करता हूँ।

4.तुम ही माता हो,तुम ही पिता हो,

तुम ही बन्धु हो,तुम ही सखा हो,

तुम ही विद्या हो, तुम ही धन हो।

हे देवताओं के देव! सदगुरूदेव! तुम ही मेरा सब कुछ हो।



5.जो ब्रह्मानन्द स्वरूप हैं,
परम सुख देने वाले हैं,
जो केवल ज्ञानस्वरूप हैं,
(सुख-दुःख, शीत-उष्ण आदि) द्वंद्वों से रहित हैं,
आकाश के समान सूक्ष्म और सर्वव्यापक हैं,
तत्त्वमसि आदि महावाक्यों के लक्ष्यार्थ हैं,
एक हैं, नित्य हैं, मलरहित हैं, अचल हैं,
सर्व बुद्धियों के साक्षी हैं,

सत्त्व,रज,और तम तीनों गुणों के रहित हैं –
ऐसे श्री सदगुरूदेव को मैं नमस्कार करता हूँ।

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

ये व्रत ले लो

लोगो की निंदा नहीं करूँगा’ – ये व्रत ले लो

–ॠतुओं की निंदा नहीं करूँगा – ये व्रत ले लो

–पशुओं की निंदा नहीं करूँगा– ये व्रत ले लो

–पक्षियों की निंदा नहीं करूँगा– ये व्रत ले लो

–शराब नहीं पिउंगा ये व्रत ले लो

–मांस भक्षण नहीं करूँगा ये व्रत ले लो

–कोई भी परिस्थिति आएगी तो प्रभावित नहीं होऊंगा,ये व्रत ले लो

देखो..फिर फिसलेंगे नहीं …

फिसले या फिसलने लगो तो भी हो सावधान हो जाना ,

समता तो आप में समता आ जायेगी……

समता आते ही आप भगवान के अनुभव को अपना अनुभव पायेंगे !

श्री राम ,कृष्ण और भगवान शिव शंकर त्रंबकेश्वर के अनुभव को अपना अनुभव पायेंगे !!

लीलाशाह भगवान के अनुभव को अपना अनुभव पाएंगे ,

बापू के अनुभव को अपना पायेंगे …!!


समत्व योग मुच्यते
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हठ योग,लय योग,नादानुसंधान योग,कुंडलिनी योग ..

कई योगो को मैंने सुना ,

देखा और किया भी है ..


लेकिन श्रीकृष्ण भगवान का

‘समत्व योग मुच्चते’..सब से श्रेष्ठ योग हैं…. !!


कोई भी परिस्थिति आए,चित्त की समता बनी रहेती हैं …

ना डरना,ना फिसलना कैसी भी परिस्थति में व्यक्ति सम रहे …

ये समत्व योग है …

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

असफलता एक चुनौती है

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,

चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है.

मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,

चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है.

आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,

जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है.

मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,

बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में.

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,

क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो.

जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,

संघर्श का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम.

कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

दोनों हाथ में लड्डू ......

दुखी होना ये मनुष्य की बेवकूफी है..

सुखी हो कर अपने को बड़ा मानना ये मनुष्य की बेवकूफी है..

वस्तुओ से आप अपने को बड़ा मानते तो ये आप की बेवकूफी है

और वस्तुओ के अभाव में अपने को तुच्छ मानते तो ये आप की ना-समझी है..

आप तो भगवान के अमृतपुत्र हो..

अमृतपुत्री हो..

सुखद अवस्था आए या दुखद अवस्था आए ,

दोनों का फायदा उठाओ.

श्रीराम तो वनवास में भी कुशा की शैय्या पर भी आनंद से लेटे है ..

राज्याभिषेक की तैय्यारियाँ देखकर भी चेहरे पर वो ही शान्ति और वनवास में भी चेहरे पर वो ही शान्ति है..

कर्म के शुभ -अशुभ सभी प्रभावों से परे अपने स्वभाव (आत्म-स्वभाव) में स्थित हुए है..



कैकेयी ने ये किया, ऐसा हम को नही करना चाहिए –

इस अर्थ में आप अपने अन्तकरण को शुध्द कर सकते है ..

लेकिन कैकेयी ऐसी है..कैकेयी वैसी है ....

ये सोचकर आप अपने कर्म के जाल को मत बुनो..(किसी को कोसो नही)



राम जी की स्थिति देखकर आप सुख दुःख में सम रहेना सीखो..


लाभ-हानि , जीवन-मरण ये संसार का खिलवाड़ है..


आप कर्म सिध्दांत का उपयोग करो लेकिन भक्ति के गोद में चले जाओ..

और अपनी भक्ति के बल से भगवान को पाओगे ऐसा नही,..

कर्म सिध्दांत से भी भक्ति सिध्दांत ये भगवान के गोद में जाने का सीधा रास्ता है..

आप भगवान के गोद चले जाओ..क्यो की भगवान के आप अमर पुत्र हो..


अच्छे कर्म कर के भगवान को अर्पण करो और बुरे कर्मो से बचो..

गलती से बुरे कर्म हो जाए तो प्रायश्चित्त कर के दुबारा गलती ना करो..

आप के दोनों हाथ में लड्डू है..


waah bapu waah...

sadho sadho...

kya samjate hai mere jogi mere bapu...

wah sai wah...jai ho..

जोगी रे हम तो लूट गए तेरे प्यार में....

सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

मक्का मदीना(सत्संग का आश्रय लो…. )

महाभारत युध्द का सूत्रधार पद था ,
फिर भी श्रीकृष्ण की बंसी बज रही है ….
ऐसा नहीं समझना की श्रीकृष्ण के जीवन में केवल सफलता है
कितनी बार नंगे पैर ,
एक जोड़ी कपडो में परिस्थितियों को देखकर भाग जाना पड़ा..

एक वस्त्र में !
ऋशियों के द्वार का प्रसाद पाकर बलराम और शाम को जीना पडा..
अहंकारी विरोधी लोगों ने वह भी नहीं रहेने दिया श्रीकृष्ण
को तो किसी पहाडी पर अज्ञातवास में रहेना पडा …
पहाडी पर पहुंचे तो दुर्जनों को पता चला …
तो दुर्जनों ने पहाड़ी को भी आग लगा दी…
तो श्रीकृष्ण कैसे भी कर के बच निकले …


देखो श्रीकृष्ण के जीवन में ऐसा आता है..!!

तो तुम्हारे जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं ….


– फिर फरियाद क्यों करते ?
– दुखी क्यों होते ?
– अपने को क्यों कोसते ?



मोहमद पैगम्बर को इतना विरोध हुआ कि,
मक्का छुड़वा दिया विरोधियों ने और उन को मक्का छोड़कर मदीना पलायन करना पड़ा था..


श्रीकृष्ण को भी पहाड़ी से पलायन कर के और जगह जाना पडा था..
द्वारिका सुरक्षित करने के लिए कितने प्रयत्न किए लेकिन वो भी समुद्र में समा गई …

क्यों कि अपने आत्मा के सिवाय जो कुछ भी मिलेगा वो छुट जाएगा !
जिस को कभी नहीं छोड़ सकते वो हमारे अपने आत्मदेव हैं….
ओंकार का गुंजन करके हम उस आत्मदेव में विश्रांति पाये ..

सत्संग सुनके ज्ञान पाये …

भगवान कृष्ण साकार होके आए फिर भी अर्जुन का दुःख नहीं मिटा...
लेकिन ये ज्ञान सत्संग का आश्रय लिया तो अर्जुन का दुःख टिका नहीं ……

श्री रामजी साकार भगवान है ,फिर भी धोबी की लांछन लगाने की दुरमति नहीं मिटी
लेकिन श्रीराम जी का ज्ञान पाने वाले हनुमान जी ने सुमति पायी ..




सत्संग का आश्रय लो….

श्रेष्ठ जनों का आश्रय लो …

सन्मति को बढाए ऐसा सात्विक खुराक ,सात्विक वातावरण का आश्रय लो ..

देश,काल और वास्तु में सावधान रहेना

प्रभात को सूरज उगने से पहले 2/सव्वा 2 घंटे पहले ब्रम्ह मुहूर्त होता है ,
उसमें उठकर ध्यान भजन करें ..

श्रीकृष्ण ब्रम्ह मुहूर्त में उठकर कुल्ला कर लेते और चिंतन करते …
जो सत् है ,चेतन है ,आनंद है …वो मेरा वास्तविक स्वरूप है .. !

आप भी ऐसी दिनचर्या करें ..

– जो कुछ दिन भर में कार्य करने होते उस की योजना प्रभात को ही तैयार कर ले. ..

– थोडी देर कुछ भी चिंतन ना करें …


hariom shanti ......jai bapu asharam..
jo ki hume itna sunder saral gyan de rhe hai...jai ho..

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

जोगी रे हम तो लूट गए तेरे प्यार में (1st जोगी रे ) bhajan

जोगी रे हम तो लूट गए तेरे प्यार में

जाने ना !(सदगुरुदेव जी भगवान की ख़ास अदा से ! )

जाने ना ऽऽऽऽ तुझ को ख़बर कब होगी.. ll



चंदा भी देखा, तारे भी देखे , देखा सूरज बरसों

जब से मैंने तुम को देखा मन में फूली सरसों..

हाय!

जोगी रे हम तो लूट गए तेरे प्यार में… ll1ll



सूरत तेरी बड़ी है प्यारी, अखिया है मतवाली

जोगी ! सूरत तेरी बड़ी है प्यारी, अखिया है मतवाली

ऩजर उतारू तेरी गुरुवार जाऊं मैं बलिहारी..

हाय!

जोगी रे हम तो लूट गए तेरे प्यार में..ll2ll



जब से हम ने तुम को देखा छुट गई मनमानी

जोगी !जब से हम ने तुम को देखा छुट गई मनमानी

श्वास श्वास में नाम रटू तेरा हो गई मैं दीवानी..

हाय !

जोगी रे हम तो लूट गए तेरे प्यार में..ll3ll



तेरा दर्शन सब से प्यारा तेरा सत्संग न्यारा

जोगी ! तेरा दर्शन सब से प्यारा तेरा सत्संग न्यारा

सब को नाच नचाये जोगी कैसा भोलाभाला

..हाय!

जोगी रे हम तो लूट गए तेरे प्यार में..ll4ll



तेरे दरश मन हो पुलकित आनंद आनंद छाए

जोगी !तेरे दरश मन हो पुलकित आनंद आनंद छाए

तेरी अखियाँ ऐसे लागे जैसे हमें बुलाए

हाय!

जोगी रे हम तो लूट गए तेरे प्यार में..ll5ll



ज्ञान की ज्योत तुम हो जगाते भक्ति की धारा बहाते

आनंद आनंद सब को आता ,दौडे दौडे आते

..हाय!

जोगी रे हम तो लूट गए तेरे प्यार में..ll6ll



मेरे गुरूवर मेरे रहेबर सत्संग सदा तुम देना

दूर ना होना हम से जोगी ऐसा मेरा कहेना..

हाय!

जोगी रे हम तो लूट गए तेरे प्यार में..ll7ll





जोगी देख के सब है रिझते क्या क्या आनंद आता

क्या क्या आनंद आता जोगी क्या क्या ज्ञान बढाते

..हाय!

जोगी रे हम तो लूट गए तेरे प्यार में..ll8ll



तुम से ही है सब हरियाली महेके डाली डाली

जोगी !तुम से है सब हरियाली महेके डाली डाली

जोगी तुम को देखे जो भी छाये मुख पे लाली…

हाय!

जोगी रे हम तो आए तेरे द्वार पे..ll9ll



तन मन में बस जाओ जोगी ये है मेरी मर्जी

जोगी !तन मन में बस जाओ जोगी ये है मेरी मर्जी

इस को मेरा भाव समझ लो या समझो खुदगर्जी!

हाय!

जोगी रे हम लूट गए तेरे प्यार में..ll10ll



तेरे प्रेम में नीर बहाऊ मूरत मनवा बसांउँ

जोगी!तेरे प्रेम में नीर बहाऊ मूरत मनवा बसांउँ

तेरी याद में मेरे जोगी मैं बलिहारी जाउँ

हाय!

जोगी रे..हम तो लूट गए तेरे प्यार में..ll11ll

जाने ना(सदगुरुदेव जी भगवान की ख़ास अदा से ! )

जाने ना ऽऽऽऽ तुझ को ख़बर कब होगी……

हरि ॐ हरि

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

i love u bapu....

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हाय कष्ट! हाय दुःख!”

राजा जनक ने देखा कि सत्संग के बहोत लाभ है..
सत्संग के बिना आत्मा का प्रकाश नही मिलता..
ज्ञान नही है तो आदमी कितना भी राजा महाराज हो तो भी उसका दुःख नही मिटता
तो सत्संग का महत्त्व जानो..सत्संगति के द्वारा ही जनम मरण का अंत होता है…..

मुक्ति कि अनुभूति इसी सत्संग के द्वारा होती है..
सत्संग का महत्त्व है इसका पुण्य महा कल्याणकारी है…
सत्संग कि महिमा अपरम्पार है….

राजा जनक
को सत्संग से लाभ हुआ
और भगवत प्राप्ति हुयी तो उन्होने पूरी प्रजा को भी सत्संग से लाभान्वित
करने के लिए सत्संग का आयोजन किया..


अष्टावक्र महाराज सत्संग मंच पे आये इतने में एक भयंकर काला सांप आया…….
सभा मे आगे आगे साप आये तो लोग जरा दहेल गए..

त्रिकाल ज्ञानी अष्टावक्र महाराज ने सांप को देखा..
समझ गए की ये सांप साधारण नही है..
मिथिला का भूतपूर्व राजा अज्ज है..

अष्टावक्र महाराज ने सभा के लोगो को बोला कि ,
सभा मे ये सांप तुम्हे काटने को नही आया ..
ये इसी मिथिला नगरी का राजा अज्ज है….

सत्संग सुनके अपने पापो को नष्ट करेगा…
सत्संग के पूर्णाहुति कि बेला आएगी तो उसको दिव्य शरीर मिलेगा..

इसी के मुंह से आप इसकी आप बीती सुनोगे ऐसी मैं व्यवस्था करूँगा..
सत्संग चलते चलते पूर्णाहुति कि बेला आई…


जब पूर्णाहुति कि बेला हुयी तो जो सांप कुण्डी मारकर बैठता था
और सत्संग सुनता था तो वह बार बार अपनी फण उठाए और पटके.
फिर उठे फण सिर पटके..

ऐसा ५ -२५ बार फटके लगने से कंकर पत्थर लगा …
जब खून निकला तो ऊसकी जिव कि ज्योति बाहर निकली और

देखते देखते ऊसमे से एक दिव्यपुरुष देवता के रूप मी प्रकट हो गए ..
लोग देखते रहे गए…वह देव पुरुष आगे बढ़ा…ऊसने राजा जनक का माथा सुंघा..
अष्टावक्र को प्रणाम किया..

अष्टावक्र महाराज ने कहा कि “मैं
तो तुझे जानता हूँ ,लेकिन ये सत्संगियो को तुम अपनी आप बीती सुनाये..”


तब वो देवपुरुष राजा अज्ज कहने लगे कि,
मैं इसी मिथिला नगरी का राजा जनक से ६ पीढ़ी पहले का राजा अज्ज हूँ
किसी कारन वश मुझे मरने के बाद ऐसी तुच्छ योनिया मिली…

यमराज के पास मृत्यु के बाद गया तो यमराज ने कहा मुझे
की १००० वर्ष साप और अजगर कि योनी मी तुम्हे दुःख देखना पड़ेगा….”

मैंने यमराज से हाथ जोड़कर कहा कि “हे यमराज, मुझ पर कृपा करो…
१००० वर्ष ऐसी योनियों में ?…..

तो यमराज ने कहा, “अगर कोई आप के कुल मे–कोई कुलदीपक,
बेटा,बेटे का बेटा या जो आप के वंश मे जन्मा है

वह अगर सत्संग करवाए या सत्संग के आयोजन में
भागीदार हो तो तुम्हे अपने कर्मो से छुटकारा मिल सकता है…”

तो राजा अज्ज ने कहा कि,“हे संयम पूरी के देवता!…
मुझ पर कृपा करे कि ऐसा आयोजन हो तो मुझे वहा उपस्थित होने का लाभ मिले..

जो अपने कुल की संतान की द्वारा सत्संग हो रहा हो तो
मैं वह सत्संग का माहोल नीहार के अपनी आँखे पवित्र करू..

सत्संग के वचन सुनकर अपने जनम जन्मांतर के पाप-ताप
निवृत्त करके ज्ञान का प्रकाश पाऊं ..

हे सय्याम पूरी के देवता !आप अगर कृपा करे तो ये वरदान दे सकते है..
यमराज प्रसन्न होकर बोले कि,

“बाढम बाढम !!(बढिया बढिया) साधो साधो!

तुम्हारी मांग..सत्संग कि मांग..सीधी साधी है..एवं अस्तु!”

फिर मैं चन्द्रमा के किरणों के द्वारा गिराया गया ..
कई तुच्छ योनियों मे भटकते भटकते अजगर बना…
रात को पेट भरने को निकलता…

मेंढक या ऐसे ही जिव जानवर का शिकार करता..शिकार नही मिले
तो मरा हुआ प्राणी जिव जानवर खाता …

कभी वह भी न मिलता तो भूके पेट लौटता..
तो कभी पेड़ पर गोलमटोल चढ़कर पक्षियो के घोसलो मे से ऊनके अंडे या बच्चे को चबा लेता…

एक पूनम के रात मैं वह शिकार मिलने मे भी विफल रहा..पक्षी मिलकर किल्होल करने लगे..
प्रभात काल मे अपने बिल कि तरफ लौट रहा था ,

तो चांदनी के कारन लोग जंगल मी लकडियां और घांस लेने के लिए घसिरिये जल्दी आ गए थे..
उनकी मुझ पर नज़र पड़ी..
तो मुझे देखकर लोगो ने शोर किया “पकडो पकडो मारो मारो”..

मैं जल्दी जल्दी अपने बिल में घुसने लगा
आधे से जादा घुस गया तो लोगो ने पथ्थर से,
लकडी से मेरी पुच्छ पर प्रहार किया….


घसीटते घसीटते कैसे भी मैं बिल के अन्दर घुसा…
लहूलुहान होकर पुच्छ घसीटता अन्दर गया
सोचा कि कुछ आराम पाउँगा..

लेकिन भाइयो जिन्होंने हरि में सत्संग के द्वारा आराम नही पाया ,
वह राज पद से च्युँत होकर क्या आराम पाएंगे..

मेरे खून कि गंध जंगल के किडियो को आई और चिंटियों की,
किडियोकी कतार लग गयी..

किडियो ने मेरी पुच्छ को नोच डाला ….
किडियो से जान छुडा नही सकता था..

कहा तो “राजाधिराज महाराज अन्नदाता पधार रहे है..”
और कहा छोटी सी किडि से भी जान नही छुडा सकते….
सत्संग के बिना तो राजा महाराज की भी दुर्गति होती है.. ..


इसी लिए मनुष्य को बडे से बडे पद पर आरूढ़ हो कर अथवा बडे बल पर
गर्व अभिमान नही करना चाहिऐ ये पद सदा नही रहेंगे ..

ये पद ,ये शरीर आ आके छुट जायंगे
फिर भी जो सदा रहने वाला परमेश्वर …

उस पमेश्वर के ज्ञान का,उस परमेश्वर के नाम का,
उस परमेश्वर कि प्रीति का प्रसाद नही पाया इसके लिए मैं परेशान हो रहा था ….
इस परेशानी को मिटाने के लिए आपको प्रार्थना करता हूँ ,

कि आप लोग सत्संग करना..
मैं राजाई के गर्व से बर्बाद हुआ ..
किडियो के द्वारा नोचा गया …कष्ट पाए..

एक दिन बिता..दूसरा दिन बिता..तीसरा दिन बिता..चौथा दिन…

चौथे दिन की रात कहर हो गय ..बेहोश होकर पड़ा रहा ..

कहाँ तो तेजस्वी यशस्वी राजा महाराज..
चंवर डुलाती ललनाएँ और कहाँ ये स्थिति


जाने कर्मणे गति..

सातवे दिन मेरे प्राण निकले…
बहोत दुखी होके मरा …
ऐसे कष्ट पाए..फिर जनम पाया ..

एक अंडे से बाहर निकला तो मेरी माँ सर्पिणी थी उसी ने मुझे निगल लिया..
कैसे कैसे जन्म पाए और मरता रह..

लेकिन अब बाकीके ७५० वर्ष मेरे माफ हो गए..

इतने मी पुण्यशील और सुशील पार्षद प्रकट हुए..
उन्होने अष्टावक्र महाराज के चरण मे प्रणाम किया..

कहा कि,“हम तो गुप्त रूप से सूक्ष्म रूप से रहते है ..

लेकिन आप कि महानता है इसलिए हम प्रकट हुए है..

आप के भक्त को ले जाने के लिए आये है..

आप के भक्त को ले जाने कि अनुमति दीजिए..”

अष्टावक्र जी ने “तथास्तु” कहा… हाथ से आशीर्वाद

का संकेत किया…राजा अज्ज को विमान में बिठाकर ले जा रहे है..

जनक उनको विदाई देने के लिए अभिवादन कर रहे है ….


आप भी आप के घर मी कोई आये तो उसको बिदाई देने के लिए
४ कदम चलकर जाना ये गृहस्थी जीवन कि शोभा और पुण्य बढ़ता है..

तो राजा जनक ने देव पुरुष(राजा अज्ज)को विदाई दी..राजा अज्ज आकाश मार्ग से अंतर्धान हो गए..

अष्टावक्र ने राजा जनक को दीक्षा दी…
अष्टावक्र महाराज से राजा जनक मधुभरी वाणी और चिंतन से कहता है कि,

“महाराज आप योग सामर्थ्य कि कुंजिया देनेवाले हो..मुझे योग विद्या दीजिए

जिससे मैं ये शरीर यही रखकर सूक्ष्म शरीर से स्वर्ग मे सात पीढ़ी का दर्शन करू

हमारे जो सात पीढ़ी का कल्याण हुआ ये कथा को सुनने और कथा मे साझीदार होने से
ये मैं ने प्रत्यक्ष देखा, ..

तो जो स्वर्ग मे होंगे ऊन पूर्वजो का दर्शन करू..उन्हें अभिवादन करू..”

अष्टावक्र महाराज की कृपा से राजा जनक सूक्ष्म शरीर से स्वर्ग मे पहुंचे..

लेकिन वहा यमराज ने कहा कि “तुम मरकर नही आये हो तो स्वर्ग नही जा सकते….

लेकिन राजा जनक आप ने तो सत्संग का प्याऊ लगाया..

पुण्य प्राप्त किया तो मैं तुम्हे मदद करता हूँ ..

स्वर्ग तो देखोगे लेकिन ऊसके पहले रौरव नरक,
कुम्भी पाक नरक और ऐसे कई दुखी आत्माओं के इलाको के गुजरते

मेरे अनुचर तुम्हे स्वर्ग के पीछे के दरवाजो से ले जायंगे..”

जनक जी जब वहा पहुंचे तो देखा कि ,

“हाय कष्ट! हाय दुःख!”

वहा तो कई नारकीय जिव पीडा सह रहे थे..
राजा जनक ने पूछा ये “ऐसा क्यो?


क्यो ये आक्रांत है?

तो यमराज के अनुचरों ने कहा कि

“पुण्य का फल चाहते और पुण्य नही करते ऐसे लोगो को यह यातना दी जाती है…

पाप करने से,चालाकी करने से नरक की यातना द्वारा शुध्दिकरण होता है”

इतने मे वहा के पीड़ित नारकीय जिव बोलने लगे कि ,
राजा तुम जुग जुग जियो !! “


जनक राजा को आश्चर्य हुआ…….राजा जनक को जुग जुग जियो आशीर्वाद दिए…..

बोले की ,महाराज,आप ने गुरु से दीक्षा ली आत्म विश्रांति पाई है

करने की,जानने की और मानने की शक्ति से राजा जनक को सत्संग द्वारा
ज्ञान द्वारा शांति मिली ,
ईश्वरीय आनंद पाया..
आतंरिक शांति मिली है…
तुमने ब्रह्म ज्ञान पाया है

आप को छूकर जो हवा आ रही है ,वह हमारा दुःख मिटा रही है…
बड़ी शांति मिल रही है..कृपा बरसती है…
पापियोके पाप मिटाकर शांति दे रही…

सत्संग से ज्ञान मिलता है…
सत्संग से राजा जनक अमर आत्मा परमात्मा मे विश्रांति पा रहे थे
तो उनकी पुण्याई और यश से नारकीय जिव भी अपने पापो से मुक्ति पा रहे थे….!


सत्संग से मनुष्य को ऐसे लाभ मिलते है..
आज के युग मे तो हम भी नारकीय जीवन जी रहे है..

कलियुग मे निर्धनता से पुरा समाज पीड़ित है..
निंदा ,बीमारिया ,दुःख से विश्व मे सभी नारकीय जीवन जी रहे है..

ऐसे दिनों मे सत्संग का प्रभाव बहोत भारी है..

सच बताओ कि ,अभी आप सत्संग सुन रहे हो तो अध्यात्मिक तरंग जा रहे है ,
पपियों के पाप शमन कर रहे है…

अध्यात्मिक वातावरण…

सब से–सब मंगल ही मंगल हो रहा है


jai ho...

wah bapuji wah kya gyan ki ganga bhate ho...
nigura bhi samaj jaye aisa gyan bat-te ho..
wah mere sai teri jai ho
hariom