जो कुकर्म करते हैं, दूसरों की श्रद्धा तोड़ते हैं
अथवा और कुछ गहरा कुकर्म करते हैं
उन्हें महादुःख भोगना पड़ता है
और यह जरूरी नहीं है कि किसी ने आज श्रद्धा तोड़ी
तो उसको आज ही फल मिले। आज मिले, महीने के बाद मिले,
दस साल के बाद मिले... अरे !
कर्म के विधान में तो ऐसा है कि 50 साल के बाद भी फल मिल सकता है
या बाद के किसी जन्म में भी मिल सकता है। श्रद्धा से प्रेमरस बढ़ता
किसी ने हमारा पैर तोड़ दिया तो वह इतना पापी नहीं है,
किसी ने हमारा सिर फोड़ दिया तो वह इतना पापी नहीं है
जितना वह पापी है जो हमारी श्रद्धा को तोड़ता है।
""कबीरा निंदक निंदक न मिलो पापी मिलो हजार
एक निंदक के माथे पर लाख पापिन को भार""
जो भगवान की, हमारी साधना की,
अथवा गुरु की निंदा करके हमारी श्रद्धा तोड़ता है
वह भयंकर पातकी माना जाता है।
उसकी बातों में नहीं आना चाहिए।
निंदा करके लोगों की श्रद्धा तोड़नेवाले लोगों को तो जब कष्ट होगा तब होगा
लेकिन जिसकी श्रद्धा टूटी उसका तो सर्वनाश हुआ।
बेचारे की शांति गयी, प्रेमरस गया, सत्य का प्रकाश गया।
गुरु से नाता जुड़ा और फिर पापी ने तोड़ दिया।
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