शिष्यों का अनुपम पर्व:
साधक के लिये गुरुपूर्णिमा व्रत और तपस्या का दिन है।
उस दिन साधक को चाहिये कि उपवास करे या दूध, फल अथवा अल्पाहार ले,
गुरु के द्वार जाकर गुरुदर्शन, गुरुसेवा और गुरु-सत्सन्ग का श्रवण करे।
उस दिन गुरुपूजा की पूजा करने से वर्षभर की पूर्णिमाओं के दिन किये हुए सत्कर्मों के
पुण्यों का फल मिलता है।
गुरु अपने शिष्य से और कुछ नही चाहते।
वे तो कहते हैं:
तू मुझे अपना उर आँगन दे दे, मैं अमृत की वर्षा कर दूँ ।
तुम गुरु को अपना उर-आँगन दे दो।
अपनी मान्यताओं और अहं को हृदय से निकालकर गुरु से चरणों में अर्पण कर दो।
गुरु उसी हृदय में सत्य-स्वरूप प्रभु का रस छलका देंगे।
गुरु के द्वार पर अहं लेकर जानेवाला व्यक्ति गुरु के ज्ञान को पचा नही सकता,
हरि के प्रेमरस को चख नहीं सकता।
जो शिष्य सदगुरु का पावन सान्निध्य पाकर आदर व श्रद्धा से सत्संग सुनता है
सत्संग-रस का पान करता है, उस शिष्य का प्रभाव अलौकिक होता है,
कितने ही कर्म करो, कितनी ही उपासनाएँ करो, कितने ही व्रत और अनुष्ठान करो,
कितना ही धन इकट्ठा कर लो और् कितना ही दुनिया का राज्य भोग लो
लेकिन जब तक सदगुरु के दिल का राज्य तुम्हारे दिल तक नहीं पहुँचता,
सदगुरुओं के दिल के खजाने तुम्हारे दिल तक नही उँडेले जाते,
जब तक तुम्हारा दिल सदगुरुओं के दिल को झेलने के काबिल नहीं बनता,
तब तक सब कर्म, उपासनाएँ, पूजाएँ अधुरी रह जाती हैं।
देवी-देवताओं की पूजा के बाद भी कोई पूजा शेष रह जाती है
किंतु सदगुरु की पूजा के बाद कोई पूजा नहीं बचती।
सदगुरु अंतःकरण के अंधकार को दूर करते हैं।
आत्मज्ञान के युक्तियाँ बताते हैं गुरु प्रत्येक शिष्य के अंतःकरण में निवास करते हैं।
वे जगमगाती ज्योति के समान हैं जो शिष्य की बुझी हुई हृदय-ज्योति को प्रकटाते हैं।
गुरु मेघ की तरह ज्ञानवर्षा करके शिष्य को ज्ञानवृष्टि में नहलाते रहते हैं।
गुरु ऐसे वैद्य हैं जो भवरोग को दूर करते हैं।
गुरु वे माली हैं जो जीवनरूपी वाटिका को सुरभित करते हैं।
गुरु अभेद का रहस्य बताकर भेद में अभेद का दर्शन करने की कला बताते हैं।
इस दुःखरुप संसार में गुरुकृपा ही एक ऐसा अमूल्य खजाना है
जो मनुष्य को आवागमन के कालचक्र से मुक्ति दिलाता है।
जीवन में संपत्ति, स्वास्थ्य, सत्ता, पिता, पुत्र, भाई, मित्र अथवा जीवनसाथी से भी ज्यादा
आवश्यकता सदगुरु की है।
सदगुरु शिष्य को नयी दिशा देते हैं, साधना का मार्ग बताते हैं और ज्ञान की प्राप्ति कराते हैं।
सच्चे सदगुरु शिष्य की सुषुप्त शक्तियों को जाग्रत करते हैं,
योग की शिक्षा देते हैं, ज्ञान की मस्ती देते हैं,
भक्ति की सरिता में अवगाहन कराते हैं और कर्म में निष्कामता सिखाते हैं।
इस नश्वर शरीर में अशरीरी आत्मा का ज्ञान कराकर जीते-जी मुक्ति दिलाते हैं।
सदगुरु जिसे मिल जाय सो ही धन्य है जन मन्य है।
सुरसिद्ध उसको पूजते ता सम न कोऊ अन्य है॥
अधिकारी हो गुरुदेव से उपदेश जो नर पाय है।
भोला तरे संसार से नहीं गर्भ में फिर आय है॥
अपने संकल्प के अनुसार गुरु को मन चलाओ
लेकिन गुरु के संकल्प में अपना संकल्प मिला दो तो बेडा़ पार हो जायेगा।
नम्र भाव से, कपटरहित हृदय से गुरु से द्वार जानेवाला कुछ-न-कुछ पाता ही है।
aap sabhi ko guru purima ki hardik shubkamnaye....
hariommmmmmmmmmm
http://vu3fxo.blogspot.com/2014/06/the-guru-purnima-message.html
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