कोई बसों में चक्कर लगा के जी रहा है
कोई ट्रेन की सीटी ही सपनो में सुन रहा है
कोई ऐ सी में बैठके भी थका रहता है
कोई सर के नीचे ईंट रख के सोता है
कोई अपनी ज़िन्दगी में लगा रहता है
कोई दुसरे की ज़िन्दगी में ही लगा रहता है
कोई अखबार के पन्नों में ही दिन निकाल देता
कोई बिन पढ़े ही हाकर को पैसे दे दिया है करता
किसी की आँख खुलती है सपनो के आसमान पर
किसी की आँख खुलती है तो टिकती है आसमान पर
पान की दूकान पर खड़े हुए कोई दिन बिताता है
कोई लाल पीले रंग में ही रंगा नज़र आता है
कोई अपनी धुन में जिए जा रहा है
कोई एक ही धुन सुने जा रहा है
किसी को तो आँख नाम सी रहती है
किसी को किसी की कमी नहीं खलती है
कोई मुद्दों से फिरा जा रहा है
किसी को मुद्दों से फिराया जा रहा है
कोई नाटक के मंच की तरह ज़िन्दगी को देखता है
कोई जितना भी बोलता है बहुत तोल के बोलता है
कोई बेगानों के ग़म पर भी रोता है
कोई अपनों को ग़म देके हँसता है
कोई जीता है ऐसे जैसे पल पल मरता हो
कोई जीता है ऐसे जैसे पल पल जीता हो
कोई मर कर भी जिंदा रहता है
कोई जिंदा है पता नहीं चलता है
ज़िन्दगी कैसी कैसी किस किस को मिली है
पर ज़िन्दगी सही उसको मिली है जिसने गुरु को माना गुरु को जाना और गुरु को अपना बनाया.....
तो आओ भैया आज के युग में लाखो लाखो लोगो को फायदा हुआ है ...बापू जी दीक्षा लेके .....
आओ आप भी बड़ो आगे....देर न करो....ये मौका बार बार नही आता...
गुरूजी बोलते है तू मुझे अपना उर-आगन दे दे....में उसे खुशियों से न भर दू तो कहना .......
एक बार सत्संग में जाके तो देखो ....दिल से उन्हें याद कर के तो देखो.... अगर फायदा न मिले तो फिर कहना
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