“मेरी शरण आ जाओ”
कृष्ण “मेरी” अर्थात जहा से “मैं” स्फुरित होता वहा आ जाओ कहेते !
सर्व भाव से जो कुछ करते भगवान के लिए करो…
हमें तो भगवत सुख, भगवत ज्ञान, भगवत प्रकाश चाहिए….
भगवान से मुलाक़ात चाहिए…
इस भाव से जो भी करेंगे तो आप का धन कमाना,
रोना, हँसना , गाना , नाचना भी बंदगी हो जाएगा…
कर्म करते उस का फल अहम् पोसने के लिए करते तो
कर्म का आश्रय उदेश्य तुच्छ हो जाता है.
मैं बोलता तो फल वाहवाही नही,
सुनने वाले का हीत हो तो कर्म हमारा होता,
लेकिन आप का हीत सोच के बोलता हूँ अपना काम करता हूँ
भगवत भक्ति का, हीत तुम्हारा है..
तो मैं भी राजी , आप भी राजी है !!
आप को भी लाभ! मेरा उद्देश भी पुरा होता…
फिर भी कुछ लोग चिंता करते की क्या करे?अरे !!
"मुर्दे को प्रभु देत है कपडा लत्ता आग l"
"जिन्दा नर चिंता करे उस के बड़े अभाग" ll
जो सब से जरुरी है हवा, पानी वो तो भगवान से मोफत में मिलता है ,
तो भगवान तुम को भूका रखेगा?
हम तो कितनी बार जो भी मिलाता फ़ेंक देते नदी में….
फिर भी भगवान कहा से ले आते..!!
जिस की गरज होगी आएगा सृष्टि करता ख़ुद लायेगा !!
हमारी मोहबत का कुछ और ही अंदाज है l
उन को हम पर नाज है तो हम को भी उन पर नाज है ना !..
आप पक्का कर लो की जो भी करेंगे :
आश्रय और उद्देश्य भगवान का हो !!
हमारा आश्रय भगवान के लिए होगा तो जो भी सत्कर्म करेंगे
भगवान को प्राप्त होंगे…तो भगवान का सुख,
भगवान का ज्ञान जरुर प्रगट होगा…
खाना बनाते तो कर्तव्य से रोटी बनाते ऐसा नही ,
खानेवाले का स्वास्थ्य अच्छा रहे ये उद्देश्य हो ..
कर्त्यव्य वश करू ऐसा नही …
कपडे पहेनते तो पति / पत्नी को भोगी बनाऊ तो आश्रय काम है
तो रोग शोक आयेंगे….बिल्कुल सीधी बात है …
हिंदू धरम में “धरम पत्नी” बोलते ,
कितनी महान संस्कृति है!
कन्या का विवाह करते तो पिता ये सोच के करते की
कन्या लक्ष्मी रूपा वर नारायण रूपा !!
ऐसे कर के शादी कराई जाती…
तो आश्रय और उद्देश कितना महान है …ऐ है ..
एकदम नई टोपिक है बाबा …:-)
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ......
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ........
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय .......
आप लोग पहेले की अपेक्षा मुझे ज्यादा हसते खेलते देखते होंगे…
.(कुप्रचार के आंधी तूफान से) तो मेरी प्रसन्नता और बढ़ गई !! .
.आप को लगता की नही लगता?…सच बताओ…
आनंद के लिए वाइन पिने की जरुरत नही,
पत्नी के हाडमांस को नोचने की जरुरत नही….
स्वास्थ्य के लिए टोनिक की जरुरत नही…
दुनिया के विषय विकारों के जरुरत नही…
जहा जायेंगे मधुरता आ जायेगी…!
मधुर मधुर नाम हरी हरी ॐ (मधुर कीर्तन हो रहा है)
हसते खेलते खाते पहेनते मुक्ति का अनुभव कराये वो सदगुरू भावे..:-)
गोरखनाथ बोलते,
हसिबो खेलिबो धरिबो ध्यान
अहर्निश कथिबो ब्रम्हज्ञान l
खाए पिए न करे मन भंगा
कहो नाथ मैं तिस के संगा ..ll
हरी ॐ.......
satsang...
Sept. 14th 2008Delhi
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