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बुधवार, 3 नवंबर 2010

दीपावली और नूतन वर्ष की खूब-खूब शुभकामनाएँ…



अज्ञानरूपी अंधकार पर ज्ञानरूपी प्रकाश की विजय का संदेश देता है –

जगमगाते दीपों का उत्सव ‘दीपावली।‘



भारतीय संस्कृति के इस प्रकाशमय पर्व की आप सभी को खूब-खूब शुभकामनाएँ…




आप सभी का जीवन ज्ञानरूपी प्रकाश से जगमगाता रहे…


दीपावली और नूतन वर्ष की यही शुभकामनाएँ…




दीपावली का दूसरा दिन अर्थात् नूतन वर्ष का प्रथम दिन..
जो वर्ष के प्रथम दिन हर्ष,दैन्य आदि जिस भाव में रहता है,
उसका संपूर्ण वर्ष उसी भाव में बीतता है।

‘महाभारत‘ में पितामह भीष्म महाराज युधिष्ठिर से कहते हैं-

यो यादृशेन भावेन तिष्ठत्यस्यां युधिष्ठिर।
हर्षदैन्यादिरूपेण तस्य वर्षं प्रयाति वै।।


हे युधिष्ठिर ! आज नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है
उसका पूरा वर्ष हर्ष में जाता है और जो शोक में रहता है,
उसका पूरा वर्ष शोक में ही व्यतीत होता है।‘


अतः वर्ष का प्रथम दिन हर्ष में बीते, ऐसा प्रयत्न करें।
वर्ष का प्रथम दिन दीनता-हीनता अथवा पाप-ताप में न बीते
वरन् शुभ चिंतन में, सत्कर्मों में प्रसन्नता में बीते ऐसा यत्न करें।

सर्वश्रेष्ठ तो यह है कि वर्ष का प्रथम दिन परमात्म-चिंतन,
परमात्म-ज्ञान और परमात्म-शांति में बीते ताकि पूरा वर्ष वैसा ही बीते।

इसलिए दीपावली की रात्रि को वैसा ही चिंतन करते-करते सोना ताकि नूतन वर्ष की सुबह का पहला क्षण भी वैसा ही हो। दूसरा, तीसरा, चौथा… क्षण भी वैसा ही हो। वर्ष का प्रथम दिन इस प्रकार से आरंभ करना कि पूरा वर्ष भगवन्नाम-जप, भगवान के ध्यान, भगवान के चिंतन में बीते….


नूतन वर्ष के दिन अपने जीवन में एक ऊँचा दृष्टिबिंदु होना अत्यंत आवश्यक है।
जीवन की ऊँचाइयाँ मिलती हैं –
दुर्गुणों को हटाने और सदगुणों को बढ़ाने से लेकिन सदगुणों की भी एक सीमा है।

सदगुणी स्वर्ग तक जा सकता है,
दुर्गुणी नरक तक जा सकता है।
मिश्रितवाला मनुष्य-जन्म लेकर सुख-दुःख,पाप-पुण्य की खिचड़ी खाता है।

दुर्गुणों से बचने के लिए सदगुण अच्छे हैं,
लेकिन मैं सदगुणी हूँ इस बेवकूफी का भी त्याग करना पड़ता है।

श्रीकृष्ण सबसे ऊँची बात बताते हैं, सबसे ऊँची निगाह देते हैं।

श्रीकृष्ण कहते हैं-

प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।
न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि कांक्षति।।

‘हे अर्जुन!जो पुरुष सत्त्वगुण के कार्यरूप प्रकाश को और रजोगुण के कार्यरूप प्रवृत्ति को
तथा तमोगुण के कार्यरूप मोह को भी न तो प्रवृत्त होने पर उनसे द्वेष करता है

और न निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा करता है (वह पुरुष गुणातीत कहा जाता है)।‘(गीताः 14.22)

1 टिप्पणी:

  1. दीपोत्सव पर हमारी अशेष शुभ-भावनाएँ.
    इस दीपावली के पावन प्रकाश से आपका
    जीवनजगत खुशियों से आलोकित हो.
    -विजय

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