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शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

गुरुवर तुम्हें कैसे रिझाएँ हम

गुरुवर तुम्हें कैसे रिझाएँ हम

तड़पती रूह को तुमसे कैसे मिलाएँ हम

उठते हुए जज्बातों को क्या समझाएँ हम

बस यही सोचते है की तुम्हें कैसे रिझाएँ हम



न प्रेम भरा विश्वास है, न भाव भरा अहसास ही है

तेरी याद में पलके भीगी रहे, न वो अश्कों की बरसात ही है

न पुण्य कर्म ही संचित है, न कर सकें कुछ अर्पित है

चरणों में तुम्हारे आकर के क्या भेंट चढ़ाएँ हम



उपकार है तुमने इतने किए जिसका कोई हिसाब नहीं

तेरी रहमत को हम हम लिख पाएँ ऐसा कोई अल्फांज नहीं

हम तेरे लिए कुछ कर पाएँ इतनी भी कोई औकात नहीं

कर्ज तेरे उपकारों का फिर कैसे चुकाएँ हम



हर कर्म में तेरी पूजा नहीं, हर सोच में तेरी याद नहीं

श्वासों की ये बगिया प्रभु तेरे नाम से आबाद नहीं

हम रोएँ आपने कर्मों पर कोई ऐसा पश्चात्ताप नहीं

अब तू ही बता मेरे प्रभु तुझे कैसे मनाएँ हम



तू पाक मसीहा दुनिया में, हम दाग भरी इक चादर है

तू रहमतों का सैलाब प्रभु, हम इक खाली गागर है

हम बिछड़ी होई इक धारा और तू ही हमारा सागर है

पर फिर भी तमन्ना है दिल में तुझसे मिल जाएँ हम

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