दुखी होना ये मनुष्य की बेवकूफी है..
सुखी हो कर अपने को बड़ा मानना ये मनुष्य की बेवकूफी है..
वस्तुओ से आप अपने को बड़ा मानते तो ये आप की बेवकूफी है
और वस्तुओ के अभाव में अपने को तुच्छ मानते तो ये आप की ना-समझी है..
आप तो भगवान के अमृतपुत्र हो..
अमृतपुत्री हो..
सुखद अवस्था आए या दुखद अवस्था आए ,
दोनों का फायदा उठाओ.
श्रीराम तो वनवास में भी कुशा की शैय्या पर भी आनंद से लेटे है ..
राज्याभिषेक की तैय्यारियाँ देखकर भी चेहरे पर वो ही शान्ति और वनवास में भी चेहरे पर वो ही शान्ति है..
कर्म के शुभ -अशुभ सभी प्रभावों से परे अपने स्वभाव (आत्म-स्वभाव) में स्थित हुए है..
कैकेयी ने ये किया, ऐसा हम को नही करना चाहिए –
इस अर्थ में आप अपने अन्तकरण को शुध्द कर सकते है ..
लेकिन कैकेयी ऐसी है..कैकेयी वैसी है ....
ये सोचकर आप अपने कर्म के जाल को मत बुनो..(किसी को कोसो नही)
राम जी की स्थिति देखकर आप सुख दुःख में सम रहेना सीखो..
लाभ-हानि , जीवन-मरण ये संसार का खिलवाड़ है..
आप कर्म सिध्दांत का उपयोग करो लेकिन भक्ति के गोद में चले जाओ..
और अपनी भक्ति के बल से भगवान को पाओगे ऐसा नही,..
कर्म सिध्दांत से भी भक्ति सिध्दांत ये भगवान के गोद में जाने का सीधा रास्ता है..
आप भगवान के गोद चले जाओ..क्यो की भगवान के आप अमर पुत्र हो..
अच्छे कर्म कर के भगवान को अर्पण करो और बुरे कर्मो से बचो..
गलती से बुरे कर्म हो जाए तो प्रायश्चित्त कर के दुबारा गलती ना करो..
आप के दोनों हाथ में लड्डू है..
waah bapu waah...
sadho sadho...
kya samjate hai mere jogi mere bapu...
wah sai wah...jai ho..
जोगी रे हम तो लूट गए तेरे प्यार में....
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