bapu


Click here for Myspace Layouts

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

कालिया नाग

बांके बिहारी लाल के जीवन में आनंद था ..

लेकिन पग-पग पर विपदा भी आई ..

तो कभी ऐसा नही सोचना कि,भगवान के रास्ते जाते को दुख आते ….

जहाँ दुःख ना आते ऐसा कोई रास्ता नही,

ऐसी कोई जगह नही …..


अगर कहीं दुःख नही आते हैं तो वो है समझदारी !!…
दुःख और विघ्न को भगवान कृष्ण के जीवन में पग-पग पे आए ….
जिन के जनम के भय से माता पिता को जेल में डाल दिया गया …..


जनमते ही पराये घर लिवाए गए ….
6 दिन के बाद पूतना (राक्षसी) आई ..
पूतना क्या है? “वासना” रूपी राक्षसी है …


जो भले भले जपी तपियों को मार गिराती हैं ……
पूतना वासना रूपी विष का पान कराने के बाद आया छटकासुर ….


कितने कितने विजन आए फिर भी मधु-मय ,
ज्ञान-मय कृष्ण विचलित नहीं हुए ….
ये भगवान का भगवतिय-पना हैं …
आयु के 17 साल तक नि-हत्ये होते हुए भी दैत्यों से भिड़ते रहें….
दूसरो को बचाते रहें हैं …


कंस मामा के साजिश से भिड़ते रहे…

ऐसे नहीं की कृष्ण के बाल्यकाल में मख्खन मिस्रियां ही थी ,

उन के तो जीवन में पग-पग पर विघ्न थे..


जो विघ्न बढ़ा और परिस्थितियों को सत्य मानकर दब जाते ,
वो संसार संग्राम में हार जाता …..
दुःख-सुख ,विघ्न-बाधा तो आने जाने वाला हैं…


कालिया नाग जैसा विषधर संसार सर्प है,

डंख मारे तो मर जाए ऐसा भगवान कृष्ण नहीं सिखाते ….

संसार का राग- द्वेष डंख मारने आया तो ऐसे संसार से बचाना हो तो दुःख-सुख के,

राग-द्वेष के सर पर नृत्य करो ….!(ऐसा श्रीकृष्ण भगवान सिखाते हैं..)

सुखं वा यदि वा दुखं ..
सभी परिस्थितियों में सम रहेना ..
संसार में रहेते तो कभी निंदा आयी, कभी वाहवाही आयी …
जिस की निंदा या वाहवाही हुयी वो मैं नहीं हूँ .. मैं नित्य हूँ ….!(ऐसा माने..)

आप भी इस प्रकार की समझ बढ़ाए ..

हो हो के मिट जाने वाले संसार से अमिट के”मैं स्वरूप”का कुछ भी नहीं बिगड़ता …

कृष्ण विपदाओं में भी बंसी बजाते रहेते …

मधुर-ता का दान करते रहेते …सदा प्रेम का दान करते ,

रस का नित्य नवीन पान करते और कराते …

ऐसे कृष्ण की स्मरति कर के,गुरुदेव ने दिए ज्ञान कि स्मृति कर के अपने जीवन और कर्म को दिव्य बनाये ..


समाज में दुःख क्यों हैं?
समाज में कंस (रूपी वृत्ति),काल,और अज्ञान दुःख देता हैं …


(कंस प्रवृत्ति से बचने के लिए )आप शोषक ना बनो और ना दूसरो को शोषित करो

(दूषित काल के चक्र से बचने के लिए )अशुद्ध काल की चपेट में ना आए और

ना ही दूसरो को लाये …

(अज्ञान से बचने के लिए) दुसरे का अज्ञान बढाए नहीं ,

और ख़ुद का अज्ञान बढ़ने नहीं देना …

अज्ञान मिटाने का प्रयत्न करे

अज्ञान कैसे मिटाए?

अज्ञान को मिटाने के लिए बाबा नंद का जैसा शुध्द अन्तकरण ,

देवकी और यशोदा जैसी भगवान को यश देनेवाली बुध्दी बनाए ….

हर परिस्थिति का यश देते भगवान को — वाह प्रभु , तेरी करूणा कृपा !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें