bapu


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शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

हाय कष्ट! हाय दुःख!”

राजा जनक ने देखा कि सत्संग के बहोत लाभ है..
सत्संग के बिना आत्मा का प्रकाश नही मिलता..
ज्ञान नही है तो आदमी कितना भी राजा महाराज हो तो भी उसका दुःख नही मिटता
तो सत्संग का महत्त्व जानो..सत्संगति के द्वारा ही जनम मरण का अंत होता है…..

मुक्ति कि अनुभूति इसी सत्संग के द्वारा होती है..
सत्संग का महत्त्व है इसका पुण्य महा कल्याणकारी है…
सत्संग कि महिमा अपरम्पार है….

राजा जनक
को सत्संग से लाभ हुआ
और भगवत प्राप्ति हुयी तो उन्होने पूरी प्रजा को भी सत्संग से लाभान्वित
करने के लिए सत्संग का आयोजन किया..


अष्टावक्र महाराज सत्संग मंच पे आये इतने में एक भयंकर काला सांप आया…….
सभा मे आगे आगे साप आये तो लोग जरा दहेल गए..

त्रिकाल ज्ञानी अष्टावक्र महाराज ने सांप को देखा..
समझ गए की ये सांप साधारण नही है..
मिथिला का भूतपूर्व राजा अज्ज है..

अष्टावक्र महाराज ने सभा के लोगो को बोला कि ,
सभा मे ये सांप तुम्हे काटने को नही आया ..
ये इसी मिथिला नगरी का राजा अज्ज है….

सत्संग सुनके अपने पापो को नष्ट करेगा…
सत्संग के पूर्णाहुति कि बेला आएगी तो उसको दिव्य शरीर मिलेगा..

इसी के मुंह से आप इसकी आप बीती सुनोगे ऐसी मैं व्यवस्था करूँगा..
सत्संग चलते चलते पूर्णाहुति कि बेला आई…


जब पूर्णाहुति कि बेला हुयी तो जो सांप कुण्डी मारकर बैठता था
और सत्संग सुनता था तो वह बार बार अपनी फण उठाए और पटके.
फिर उठे फण सिर पटके..

ऐसा ५ -२५ बार फटके लगने से कंकर पत्थर लगा …
जब खून निकला तो ऊसकी जिव कि ज्योति बाहर निकली और

देखते देखते ऊसमे से एक दिव्यपुरुष देवता के रूप मी प्रकट हो गए ..
लोग देखते रहे गए…वह देव पुरुष आगे बढ़ा…ऊसने राजा जनक का माथा सुंघा..
अष्टावक्र को प्रणाम किया..

अष्टावक्र महाराज ने कहा कि “मैं
तो तुझे जानता हूँ ,लेकिन ये सत्संगियो को तुम अपनी आप बीती सुनाये..”


तब वो देवपुरुष राजा अज्ज कहने लगे कि,
मैं इसी मिथिला नगरी का राजा जनक से ६ पीढ़ी पहले का राजा अज्ज हूँ
किसी कारन वश मुझे मरने के बाद ऐसी तुच्छ योनिया मिली…

यमराज के पास मृत्यु के बाद गया तो यमराज ने कहा मुझे
की १००० वर्ष साप और अजगर कि योनी मी तुम्हे दुःख देखना पड़ेगा….”

मैंने यमराज से हाथ जोड़कर कहा कि “हे यमराज, मुझ पर कृपा करो…
१००० वर्ष ऐसी योनियों में ?…..

तो यमराज ने कहा, “अगर कोई आप के कुल मे–कोई कुलदीपक,
बेटा,बेटे का बेटा या जो आप के वंश मे जन्मा है

वह अगर सत्संग करवाए या सत्संग के आयोजन में
भागीदार हो तो तुम्हे अपने कर्मो से छुटकारा मिल सकता है…”

तो राजा अज्ज ने कहा कि,“हे संयम पूरी के देवता!…
मुझ पर कृपा करे कि ऐसा आयोजन हो तो मुझे वहा उपस्थित होने का लाभ मिले..

जो अपने कुल की संतान की द्वारा सत्संग हो रहा हो तो
मैं वह सत्संग का माहोल नीहार के अपनी आँखे पवित्र करू..

सत्संग के वचन सुनकर अपने जनम जन्मांतर के पाप-ताप
निवृत्त करके ज्ञान का प्रकाश पाऊं ..

हे सय्याम पूरी के देवता !आप अगर कृपा करे तो ये वरदान दे सकते है..
यमराज प्रसन्न होकर बोले कि,

“बाढम बाढम !!(बढिया बढिया) साधो साधो!

तुम्हारी मांग..सत्संग कि मांग..सीधी साधी है..एवं अस्तु!”

फिर मैं चन्द्रमा के किरणों के द्वारा गिराया गया ..
कई तुच्छ योनियों मे भटकते भटकते अजगर बना…
रात को पेट भरने को निकलता…

मेंढक या ऐसे ही जिव जानवर का शिकार करता..शिकार नही मिले
तो मरा हुआ प्राणी जिव जानवर खाता …

कभी वह भी न मिलता तो भूके पेट लौटता..
तो कभी पेड़ पर गोलमटोल चढ़कर पक्षियो के घोसलो मे से ऊनके अंडे या बच्चे को चबा लेता…

एक पूनम के रात मैं वह शिकार मिलने मे भी विफल रहा..पक्षी मिलकर किल्होल करने लगे..
प्रभात काल मे अपने बिल कि तरफ लौट रहा था ,

तो चांदनी के कारन लोग जंगल मी लकडियां और घांस लेने के लिए घसिरिये जल्दी आ गए थे..
उनकी मुझ पर नज़र पड़ी..
तो मुझे देखकर लोगो ने शोर किया “पकडो पकडो मारो मारो”..

मैं जल्दी जल्दी अपने बिल में घुसने लगा
आधे से जादा घुस गया तो लोगो ने पथ्थर से,
लकडी से मेरी पुच्छ पर प्रहार किया….


घसीटते घसीटते कैसे भी मैं बिल के अन्दर घुसा…
लहूलुहान होकर पुच्छ घसीटता अन्दर गया
सोचा कि कुछ आराम पाउँगा..

लेकिन भाइयो जिन्होंने हरि में सत्संग के द्वारा आराम नही पाया ,
वह राज पद से च्युँत होकर क्या आराम पाएंगे..

मेरे खून कि गंध जंगल के किडियो को आई और चिंटियों की,
किडियोकी कतार लग गयी..

किडियो ने मेरी पुच्छ को नोच डाला ….
किडियो से जान छुडा नही सकता था..

कहा तो “राजाधिराज महाराज अन्नदाता पधार रहे है..”
और कहा छोटी सी किडि से भी जान नही छुडा सकते….
सत्संग के बिना तो राजा महाराज की भी दुर्गति होती है.. ..


इसी लिए मनुष्य को बडे से बडे पद पर आरूढ़ हो कर अथवा बडे बल पर
गर्व अभिमान नही करना चाहिऐ ये पद सदा नही रहेंगे ..

ये पद ,ये शरीर आ आके छुट जायंगे
फिर भी जो सदा रहने वाला परमेश्वर …

उस पमेश्वर के ज्ञान का,उस परमेश्वर के नाम का,
उस परमेश्वर कि प्रीति का प्रसाद नही पाया इसके लिए मैं परेशान हो रहा था ….
इस परेशानी को मिटाने के लिए आपको प्रार्थना करता हूँ ,

कि आप लोग सत्संग करना..
मैं राजाई के गर्व से बर्बाद हुआ ..
किडियो के द्वारा नोचा गया …कष्ट पाए..

एक दिन बिता..दूसरा दिन बिता..तीसरा दिन बिता..चौथा दिन…

चौथे दिन की रात कहर हो गय ..बेहोश होकर पड़ा रहा ..

कहाँ तो तेजस्वी यशस्वी राजा महाराज..
चंवर डुलाती ललनाएँ और कहाँ ये स्थिति


जाने कर्मणे गति..

सातवे दिन मेरे प्राण निकले…
बहोत दुखी होके मरा …
ऐसे कष्ट पाए..फिर जनम पाया ..

एक अंडे से बाहर निकला तो मेरी माँ सर्पिणी थी उसी ने मुझे निगल लिया..
कैसे कैसे जन्म पाए और मरता रह..

लेकिन अब बाकीके ७५० वर्ष मेरे माफ हो गए..

इतने मी पुण्यशील और सुशील पार्षद प्रकट हुए..
उन्होने अष्टावक्र महाराज के चरण मे प्रणाम किया..

कहा कि,“हम तो गुप्त रूप से सूक्ष्म रूप से रहते है ..

लेकिन आप कि महानता है इसलिए हम प्रकट हुए है..

आप के भक्त को ले जाने के लिए आये है..

आप के भक्त को ले जाने कि अनुमति दीजिए..”

अष्टावक्र जी ने “तथास्तु” कहा… हाथ से आशीर्वाद

का संकेत किया…राजा अज्ज को विमान में बिठाकर ले जा रहे है..

जनक उनको विदाई देने के लिए अभिवादन कर रहे है ….


आप भी आप के घर मी कोई आये तो उसको बिदाई देने के लिए
४ कदम चलकर जाना ये गृहस्थी जीवन कि शोभा और पुण्य बढ़ता है..

तो राजा जनक ने देव पुरुष(राजा अज्ज)को विदाई दी..राजा अज्ज आकाश मार्ग से अंतर्धान हो गए..

अष्टावक्र ने राजा जनक को दीक्षा दी…
अष्टावक्र महाराज से राजा जनक मधुभरी वाणी और चिंतन से कहता है कि,

“महाराज आप योग सामर्थ्य कि कुंजिया देनेवाले हो..मुझे योग विद्या दीजिए

जिससे मैं ये शरीर यही रखकर सूक्ष्म शरीर से स्वर्ग मे सात पीढ़ी का दर्शन करू

हमारे जो सात पीढ़ी का कल्याण हुआ ये कथा को सुनने और कथा मे साझीदार होने से
ये मैं ने प्रत्यक्ष देखा, ..

तो जो स्वर्ग मे होंगे ऊन पूर्वजो का दर्शन करू..उन्हें अभिवादन करू..”

अष्टावक्र महाराज की कृपा से राजा जनक सूक्ष्म शरीर से स्वर्ग मे पहुंचे..

लेकिन वहा यमराज ने कहा कि “तुम मरकर नही आये हो तो स्वर्ग नही जा सकते….

लेकिन राजा जनक आप ने तो सत्संग का प्याऊ लगाया..

पुण्य प्राप्त किया तो मैं तुम्हे मदद करता हूँ ..

स्वर्ग तो देखोगे लेकिन ऊसके पहले रौरव नरक,
कुम्भी पाक नरक और ऐसे कई दुखी आत्माओं के इलाको के गुजरते

मेरे अनुचर तुम्हे स्वर्ग के पीछे के दरवाजो से ले जायंगे..”

जनक जी जब वहा पहुंचे तो देखा कि ,

“हाय कष्ट! हाय दुःख!”

वहा तो कई नारकीय जिव पीडा सह रहे थे..
राजा जनक ने पूछा ये “ऐसा क्यो?


क्यो ये आक्रांत है?

तो यमराज के अनुचरों ने कहा कि

“पुण्य का फल चाहते और पुण्य नही करते ऐसे लोगो को यह यातना दी जाती है…

पाप करने से,चालाकी करने से नरक की यातना द्वारा शुध्दिकरण होता है”

इतने मे वहा के पीड़ित नारकीय जिव बोलने लगे कि ,
राजा तुम जुग जुग जियो !! “


जनक राजा को आश्चर्य हुआ…….राजा जनक को जुग जुग जियो आशीर्वाद दिए…..

बोले की ,महाराज,आप ने गुरु से दीक्षा ली आत्म विश्रांति पाई है

करने की,जानने की और मानने की शक्ति से राजा जनक को सत्संग द्वारा
ज्ञान द्वारा शांति मिली ,
ईश्वरीय आनंद पाया..
आतंरिक शांति मिली है…
तुमने ब्रह्म ज्ञान पाया है

आप को छूकर जो हवा आ रही है ,वह हमारा दुःख मिटा रही है…
बड़ी शांति मिल रही है..कृपा बरसती है…
पापियोके पाप मिटाकर शांति दे रही…

सत्संग से ज्ञान मिलता है…
सत्संग से राजा जनक अमर आत्मा परमात्मा मे विश्रांति पा रहे थे
तो उनकी पुण्याई और यश से नारकीय जिव भी अपने पापो से मुक्ति पा रहे थे….!


सत्संग से मनुष्य को ऐसे लाभ मिलते है..
आज के युग मे तो हम भी नारकीय जीवन जी रहे है..

कलियुग मे निर्धनता से पुरा समाज पीड़ित है..
निंदा ,बीमारिया ,दुःख से विश्व मे सभी नारकीय जीवन जी रहे है..

ऐसे दिनों मे सत्संग का प्रभाव बहोत भारी है..

सच बताओ कि ,अभी आप सत्संग सुन रहे हो तो अध्यात्मिक तरंग जा रहे है ,
पपियों के पाप शमन कर रहे है…

अध्यात्मिक वातावरण…

सब से–सब मंगल ही मंगल हो रहा है


jai ho...

wah bapuji wah kya gyan ki ganga bhate ho...
nigura bhi samaj jaye aisa gyan bat-te ho..
wah mere sai teri jai ho
hariom

6 टिप्‍पणियां:

  1. man ko bahut santi mili ,ghabrahat aur dipression kam hua,dhanyavad.bahut sundar katha thi hari om.guru ji ko sadar charan spars ab meri dor guri ji ke hath hari om

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  2. इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  3. शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।

    एक विचार : चाहे कोई माने या न माने, लेकिन हमारे विचार हर अच्छे और बुरे, प्रिय और अप्रिय के प्राथमिक कारण हैं!

    -लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
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