बुधवार, 12 जनवरी 2011
आज जो भी करोगे कई गुणा पुण्य हो जाएगा (उत्तरायण पर्व) (part 2)
उत्तरायण का पर्व पुण्य - अर्जन का दिवस है.
उत्तरायण का सारा दिन पुण्यमय दिवस है,
जो भी करोगे कई गुणा पुण्य हो जाएगा.
मौन रखना, जप करना, भोजन आदि का संयम रखना और भगवत् - प्रसाद को पाने का
संकल्प करके भगवान को जैसे भीष्म जी कहते हैं
कि नाथ हे! मैं तुम्हारी शरण में हूँ. हे अच्युत! हे केशव! हे सर्वेश्वर!
हे परमेश्वर! हे विश्वेश्वर! मेरी बुद्धि आप में विलय हो.
ऐसे ही प्रार्थना करते - करते, जप करते - करते मन - बुद्धि को उस सर्वेश्वर में विलय देना कर.
इन्द्रियाँ मन को सँसार की तरफ खीँचती हैं
और मन बुद्धि को घटाकर भटका देता है
.
बुद्धि में अगर भगवद् - जप, भगवद् - ध्यान, भगवद् - पुकार नहीं है
तो बुद्धि बेचारी मन के पीछे - पीछे चलकर भटकाने वाली जाएगी
बन. बुद्धि में अगर बुद्धिदात की प्रार्थना, उपासना का बल है तो बुद्धि ठीक परिणाम का विचार करेगी
कि यह खा लिया तो क्या हो जाएगा?
- यह इच्छा करूँ वह इच्छा करूँ, आखिर क्या?
- ऐसा करते - बुद्धि मन की दासी नहीं बनेगी. करते ततः किं ततः किम्?
- ऐसा प्रश्न करके बुद्धि को बलवान बनाओ तो मन के संकल्प - विकल्प कम हो जाएंगे,
मन को आराम मिलेगा, बुद्धि को आराम मिलेगा.
ब्रह्मचर्य से बहुत बुद्धिबल बढ़ता है. जिनको ब्रह्मचर्य रखना हो,
संयमी जीवन जीना हो, वे उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण का सुमिरन करें,
जिससे बुद्धि में बल बढ़े.
सूर्याय नमः .........
शंकराय नमः .........
गं गणपतये नमः ............
हनुमते नमः ......... भीष्माय नमः ........... अर्यमायै नमः ............
उत्तरायण का पर्व प्राकृतिक ढंग से भी बड़ा महत्वपूर्ण है.
इस दिन लोग नदी में, तालाब में, तीर्थ में स्नान करते हैं
लेकिन शिवजी कहते हैं जो भगवद् - भजन, ध्यान और सुमिरन करता है
उसको और तीर्थों में जाने का कोई आग्रह नहीं रखना चाहिए,
उसका तो हृदय ही तीर्थमय हो जाता है.
उत्तरायण के दिन सूर्यनारायण का ध्यान - चिंतन करके,
भगवान के चिंतन में मशगूल होते - होते आत्मतीर्थ में स्नान चाहिए करना.
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