बुधवार, 12 जनवरी 2011
उत्तरायण पर्व (part 1)
उत्तरायण पर्व के दिवस से सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर चलता है.
उत्तरायण से रात्रियाँ छोटी होने लगती हैं, दिन बड़े होने लगते हैं.
अंधकार कम होने लगता है और प्रकाश बढ़ने लगता है.
जैसे कर्म होते हैं, जैसा चिंतन होता है,
चिंतन के संस्कार होते हैं वैसी गति होती है,
इसलिए उन्नत कर्म करो, उन्नत संग करो,
उन्नत चिंतन करो. उन्नत चिंतन, उत्तरायण हो चाहे दक्षिणायण हो, आपको उन्नत करेगा.
इस दिन भगवान सूर्यनारायण का मानसिक ध्यान करना चाहिए
और उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि हमें क्रोध से, काम विकारों से चिंताओं से
मुक्त करके आत्मशान्ति पाने में गुरू की कृपा पचाने में मदद करें.
इस दिन सूर्यनारायण के नामों का जप, उन्हें अर्घ्य - अर्पण और विशिष्ट मंत्र के द्वारा
उनका स्तवन किया जाय तो सारे अनिष्ट नष्ट हो जाएंगे, वर्ष भर के पुण्यलाभ प्राप्त होंगे.
ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नमः इस. मंत्र से सूर्यनारायण की वंदना कर लेना,
उनका चिंतन करके प्रणाम कर लेना.
इससे सूर्यनारायण प्रसन्न होंगे, नीरोगता देंगे और अनिष्ट से भी रक्षा करेंगे.
रोग तथा अनिष्ट का भय फिर आपको नहीं सताएगा ह्रां. ह्रीं सः सूर्याय नमः. जपते जाओ
और मन ही मन सूर्यनारायण का ध्यान करते जाओ, नमन करो.
सूर्याय नमः. मकर राशि में प्रवेश करने वाले भगवान भास्कर को हम नमन करते हैं.
मन ही मन उनका ध्यान करते हैं.
बुद्धि में सत्त्वगुण, ओज़ और शरीर में आरोग्य देनेवाले सूर्यनारायण को नमस्कार करते हैं.
नमस्ते देवदेवेश सहस्रकिरणोज्जवल.
लोकदीप नमस्ते कोणवल्लभ की स्तु नमस्ते ..
भास्कराय नमो नित्यं खखोल्काय नमो नमः.
विष्णवे कालचक्राय सोमायामातितेजसे ..
हे देवदेवेश! आप सहस्र किरणों से प्रकाशमान हैं.
हे कोणवल्लभ! आप संसार के लिए दीपक हैं, आपको हमारा नमस्कार है.
विष्णु, कालचक्र, अमित तेजस्वी, सोम आदि नामों से सुशोभित एवं अंतरिक्ष में स्थित होकर
सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करने वाले आप भगवान भास्कर को हमारा नमस्कार है.
(भविष्य पुराण, ब्राह्म 153.50.51 पर्वः)
उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण के इन नामों का जप विशेष हितकारी है.
मित्राय नमः रवये नमः. सूर्याय नमः. भानवे नमः. खगाय नमः. पूष्णे नमः. हिरण्यगर्भाय नमः.
मरीचये नमः. आदित्याय नमः. सवित्रे नमः. अर्काय नमः. भास्कराय नमः. सवितृ सूर्यनारायणाय नमः.
उत्तरायण देवताओं का प्रभातकाल है.
इस दिन तिल के उबटन व तिलमिश्रत जल से स्नान,
तिलमिश्रित जल का पान, तिल का हवन, तिल का
भोजन तथा तिल का दान सभी पापनाशक प्रयोग हैं.
hariommmmmmmmmmm
sadguru dev ke satsang parvachan se........
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