येनकेन प्रकारेण यस्य कस्यपि देहिन
संतोष जनयेद्राम तदेश्वर पूजनम्
किसी भी प्रकार से किसी भी देहधारी को संतोष प्रदान करना - यही वास्तविक पूजा है;
निराश्रित को आश्रय, अज्ञानी को ज्ञान, वस्त्रहीन को वस्त्र, भूखे को भोजन,
प्यासे को पानी, निर्बल की रक्षा, भूले भटके को सही राह,
दुखी को दिलासा, ईश्वर-परायण संत-सज्जन की सेवा,
रोते हुए को आश्वासन, थके हुए को विश्राम, निराश को आशा,
उदास को खुशी, रोगी को दवा, निरुद्यमी को उद्यम में लगाना,
अधर्मी को धर्म की राह पर मोड़ना, तप्त को शांति,
व्यसनी को व्यसन-मुक्त बनाना, गिरे हुए को उठाना,
दीन-दुखी, अनाथ, निर्बल की सहायता करना, निराधार का आधार बनना,
अपमानितों को मान देना, शोक-ग्रस्त को सांत्वना देना,
अर्थात जहाँ जिसको जिस समय जैसी आवश्यकता हो,
उसे यथा-शक्ति मदद करनी चाहिए;
------पूज्य बापूजी
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