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मंगलवार, 11 जनवरी 2011

किसी के पीछे तडपों नहीं

आप के जीवन में परिस्थिति की गुलामी ना रहे ऐसा जीवन बनाओ.

श्रीकृष्ण एकाएक  अंतर्धान हो गए.. ग्वाल-गोपियां   तडपे…



इतने में श्रीकृष्ण के दर्शन हुए.. ग्वाल  गोपियों ने पूछा, क्यों तड़पाते हो?

श्रीकृष्ण बोले,  ‘आप हम सदा थोड़ी मिले रहेंगे! मिलन सदा नहीं रहेता..

जरा अंतर्धान हो जाऊं तो तड़पते तो ऐसी आदत क्यों डालते?’

एक व्यक्ति खाते पीते  खुश-हाल जीवन जी रहा था ..

अचानक उस को अशरफियों की पोटली मिली… बड़ा खुश हुआ…

 ‘अब हम कोठी बनायेंगे, घोड़े लेंगे, खेत-खलिहान खरीदेंगे,

 ये करेंगे – वो करेंगे’  ऐसा कर के इतना अशांत हो गया की उस का खाना-पीना हराम हो गया….

 एकाएक  अशर्फियों की गठरी चोरी हो गयी …

अब वो आदमी सीर  पटक के रोने लगा…

 एक आदमी बोला,  ‘भले मानुस… ये गठरियां  नहीं थी तभी ख़ुशी से खाता -पिता था!

 अब नहीं  है तो  परिस्थिति आई और चली गयी..

अशर्फियों की पोटली  मिली और गयी…

जो लिया यही पर, जो दिया यही पर!.. 


 व्यर्थ्य  चिंतित हो रहे हो…. परेशान  मत हो …लाये क्या थे और ले क्या जाओगे?

जो चला गया रुपये, पैसे, धन , मित्र, पति, पत्नी चले गए तो उन के पीछे तडपों  नहीं, रोना नहीं…

जैसे बहेते पानी में तिनके मिलते और बिछड़ते  ऐसे परिस्थितियों में चीजे मिलती बिछड़ती .. 

 उस के लिए परेशान  क्यों होते?

अपने आप में जीना सीखो ..

बुरे का संग करने से साधू संतो का, भगवान के प्यारों का संग करना अच्छा है..

लेकिन कृष्ण ऐसा ज्ञान देते की ये भी सदा नहीं रहेगा..

परिस्थितियों के क्यों गुलाम होते?

 निसंग नारायण ही अपना आत्मा है ,

 उस में जीना सीखो… किसी 

ये ज्ञान आप क्यों  नहीं लेते?

hariommmmm  



वाह बापू वाह .....

आपके सत्संग  की अमृत वर्षा का रूप निराला ..... 

वाह साईं वाह क्या ज्ञान देते हो ......

आपकी जय हो मेरे बापू .........






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