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मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

ये तो ‘हरि ॐ’ का फल है

नारद जी ने बताया मैं तो एक गरीब दासी का बेटा था..
वो भी रोजाने काम में जाती, कभी काम मिले , कभी ना मिले…..


चातुर्मास के दिनों में किसी संत महापुरुष की कथा में किसी सेठ ने मेरी माँ को कहा की
 यहाँ कथा के मैदान में झाड़ू बुहारी लगाया कर,
का छिटकाव किया कर..तेरे को रोजी देंगे रोज की..



मैं 5 साल का था.. मेरा बाप तो मर गया था…
भी अपने माँ के साथ गया..मेरी माँ तो काम काज करे…

मैं सत्संग में बैठु..संत का दर्शन करू…
 अब समझू तो नहीं..लेकिन संत की वाणी मेरे कान से टकराए…


कान पवित्र हुए.. धीरे धीरे अच्छा लगने लगा …
फिर कीर्तन में मेरे को मजा आने लगा…
फिर कीर्तन करते करते , भगवान का नाम जपने से मेरे रक्त के कण पवित्र हुए…
ऐसे करते करते मेरे को सत्संग में रूचि हुयी…



संत जब जा रहे थे तो मैंने हाथ जोड़े…
बाबा मेरे को तो अब घर में अच्छा नहीं लगेगा
मैं तो आप के साथ चलू…????



बाबा ने कहा, ‘अभी तू बच्चा है.. घर में ही रहो..
घर में ही रहे के भजन करो..’
बोले, मेरी माँ टोकेगी…



बाबा बोले, ‘जो भगवान के रस्ते जाते, उन को मदद करनेवाले को पुण्य होता ..
लेकिन भगवान के रस्ते जानेवाले को जो रोकते-टोकते उन को पाप लगता..


ऐसे रोकने-टोकने वालो की भगवान बुध्दी बदल देते या तो भगवान अपने चरणों में बुला लेते है…
तेरी माँ की बुध्दी बदलेगी या तो तेरी माँ को भगवान अपने धाम में बुला लेंगे…’



कुछ दिनों में मेरी माँ टोकने लगी…
उस को तो साप ने काटा और वो मर गयी..
मेरी माँ की अंतेष्टि पंचों ने मकान बेच के कर लिया…


मैं तो चलता बना…दिशा का तो पता नहीं था…
उत्तर की तरफ चलता गया…
चलते चलते कही गाव आये, कई तहेसिल आये…
तालाब आये..नदिया आये..किसी से भिक्षा मांग के खा लेता..

संतो ने नाम रख दिया – ‘हरी दास’..
हरी हरी ..हे गोविन्द..हरी हरी …बोलता..कुछ और पता नहीं था…



ऐसे करते करते गंगा किनारे पहुंचा..
गंगाजी में नहा धो के थोडा पीपल के पेड़ के निचे बैठा ….
भगवान मैं कुछ नहीं जानता हूँ , लेकिन तुम्हारा हूँ…

हे गोविन्द ..हे गोपाल..हरी.. हरी…ऐसे बोलता..
मेरे को पता ही नहीं था की हरी हरी बोलने से भगवान पाप हर लेते…
’हरि ॐ ‘ बोलने से भगवान अपना ज्ञान भरते…..



मैं तो प्रभु को पुकारता …हे प्रभु …कब मिलोगे….
हरि ssssssss ओम्म्म sssssssssss

ऐसे करते करते मेरा मन शांत होने लगा… प्रकाश दिखने लगा..
आनंद भी आया, और भगवान की तड़प भी जगी…

आकाशवाणी हुयी की, ‘पुत्र अभी तू मेरा दर्शन नहीं कर सकता…
मेरे दर्शन का प्रभाव तू नहीं झेल सकेगा…


लेकिन अगले जनम में तू मेरा खास महान संत बनेगा..
‘नारदजी’ तेरा नाम पडेगा.. ब्रम्हा के यहाँ तेरा जन्म होगा..
और देश-देशांतर में , लोक-लोकांतर में तेरी अ-बाधित गति होगी …!’

कहा तो मैं गरीब दासी का बेटा..और कहा नारदजी बना !


भगवान श्रीकृष्ण के सभा में जाऊं तो भगवान श्रीकृष्ण उठ कर मेरा स्वागत करते…
 ये संतों के दर्शन का और धर्म का फल नहीं तो काय का फल है?



ये किस का फल है? बी. टेक का फल है या एम् डी होने का फल है?
पी एच डी का फल हा या डी .लिट. अथवा एम् बी बी एस होने का फल है?…



ये तो ‘हरि ॐ’ का फल है !!!!





मेरे को भी जो फल मिला वो गुरू के प्रसाद का फल मिला है…



तो नारद जी बोलते है – की महान पुरुषों का संग, सत्संग,
जप-ध्यान ये ही धर्म मनुष्य को महान बना देता है ….



भरद्वाज ऋषि कहेते की तमो गुण का ह्रास कर के सत्व गुण बढाए वो धर्म है..
भगवान व्यास जी कहेते की अंतकरण की शुध्दी के जो भी साधन कर्म है -


जप ध्यान करना,
-प्यासे को पानी देना,
- भूखे को रोटी देना,
- बीमार को स्वास्थ्य का मार्ग बताना,
- भूले हुए को रास्ता बताना,
-  हारे को हिम्मत देना..

-अ-भक्त को  भक्ति देना,
- भक्त को मन्त्र दीक्षा दिलाना
- ये सब धर्म कार्य है…
जिस से अंतकरण शुध्द हो जाए वो सब धर्म है .


शिव जी कहेते भैरवी राग सुनना स्वास्थ्य के लिए वरदान है..
ऐसे राग पहाड़ी ने कई दिल दिमाग को आल्हादित आनंदित कर दिया है..
सुरेश बापजी राग पहाड़ी सुनायेंगे:-

जोगी रे क्या जादू है तुम्हारे ज्ञान में …


बापू जी के सत्संग से......
hariommmmmmmmmm

वाह मेरे बापू वाह ....
क्या ज्ञान देते हो .....
सब हमारे लिए करते हो....
पर हम नादान है,
  मुर्ख है,



आप इतना समजाते हो फिर भी हम  समजते नही है
आपकी जय हो मेरे बापू....
तेरी लीला बड़ी है न्यारी....उसे समजे कोई अंतर्यामी

जोगी का जो साथ मिला है, डर अब हम को कैसा
अब तो करना वही है   हम को जोगी कहे है वैसा
जोगी रे क्या जादू है तुम्हारे ज्ञान में..



जय हो....

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