1.अरे संत के निंदको
अन्न समजकर खाते हो तुम विष्टा
कोई "आजतक" न तोड़ पाया
हम गुरुभक्तो की निष्ठा
2.तुम पैदा कर नही सकते
हमारे मन में भ्रांति
"बापूजी" से हमे मिला है
आनंद और शास्वत शांति
हम मौज में है,
क्यों आयेंगे तुम्हारी बातो में
तुम सदा रहे अशांत,
चैन की नींद नही रातो में....
कलम चली स्वार्थ से सदा,
स्वार्थ से केमरा तुम्हारा चला
मिडिया हमारा "ऋषि-प्रसाद"
सबका मंगल सबका भला
तू जब भी अपना मुह है खोलता
छोटे मुह बड़ी बात है बोलता
पर "कमल" बच्चा है..... अपने बापू जी का
झूठ नही बोलता.....
अब अपनी काली करतूतों से....
एक दिन अपना सर पिटोगे ....
अपने ही जूतों से.....
from manav
amravati (mah.)
This is excellent
जवाब देंहटाएंwah wah jai guru dev. bapuji me hamari shrdha bhakti bas badhti hi rahe
जवाब देंहटाएंPrabhu sach kaha aapne,aisa hi hona chahiye.Hari om
जवाब देंहटाएंsadhoooo sadhoooo thanks for all of u
जवाब देंहटाएंMeri kavita ko aapne blogpost ke madhyam se itne logo tak pahuchaya, Sadhuwad ! Maine yah aaj hi dekha, bahut achha laga.- Manav Buddhadev, Amravati. 9850470294.
जवाब देंहटाएं