संसार के दो विभाग कर लो:- एक तो वोह है जो
सारे मकान अपने नहीं हैं,साड़ी कोठियाँ अपनी नहीं हैं,
सारे दुकान अपने नहीं हैं…
२-५ मकान्,एक आठ दुकान अपनी है…
तो दो विभाग हो गए -
एक वोह जो अपना नहीं है,
वोह तो बहुत कुछ अपना नहीं है,
सारी गाड़ियाँ अपनी नहीं,
जहाज अपने नहीं हैं एक भी…
तो जो अपना नहीं है एक विभाग हो गया,
और जिसको हम अपना मानते हैं,वोह थोडा सा है…जो अपना नहीं है
वोह तो नहीं है, लेकिन जो अपना है, वोह भी रहेगा क्या ?
छोड़ना नहीं पड़ेगा क्या? जो अपना है,
वोह दूसरा अपना बने की नही बने
इसमें शंका है, लेकिन जो अपना है वोह छूटेगा की नही छूटेगा?
शरीर भी छोड़ना पड़ेगा,पत्नी भी छोड़नी पडेगी,
तो मकान साथ में ले जाएगा? पैसे साथ में ले जाएगा?
जो अपना हम सदा रख नहीं सकते, उसके लिए हेरा-फेरी करना,
बेईमानी करना,अधर्म करना,बड़ा भारी, भारी में भारी हानि है…
अपने पसीने का भी आदमी खा नहीं सकता, दाता ने इतना दिया है ..
लेकिन हाय हाय हाय, खपे खपे खपे खपे…
असत, जड़ और दुःख रुप शरीर और संसार से इतना अपने को प्रभावित कर दिया
की सत् चित, और आनंद ईश्वर ढका सा रह गया…
सब कुछ होने के बाद भी परेशानियाँ नहीं मिटी,
दुःख नहीं मिटे, भय नहीं मिटा और ईश्वर नहीं मिले
जिसको छोड़ नहीं सकते,वोह मिले नहीं,
और जिसको रख नहीं सकते,
उसके लिए कूर-कपट करके नरकों का रास्ता बना लिया…
राजा अज्ज अजगर बन गया, राजा नृग किरकिट बन गया,राजा भरत हिरन बन गया …
धन मिलने से आदमी सूखी होता है,इस में मेरा विश्वास नहीं,
यह बात सच्ची नहीं…
यूरोप के लेखक ने पुस्तक लिखी की पिछले सौ साल में कई धनवान थे
और किसी न किसी रोग से ग्रस्त थे …
करूणानिधि को केवल लोगों कि लानत नहीं पहुंची,अन्दर का चमत्कार भी मिला है,
तबियत और मन मानसिक शक्ति हारने वाले ने थोड़ी हर ली है,
तभी थोडा पेश आया है…जो सत्, चित और आनंद रुप है, वोह सब का आत्मा होकर बैठा है ..
और उनकी आत्मा को ठेस पहुंचाने कि जो गलती किया करूणानिधि ने ,
उस से उनकी मानसिकता और स्वास्थ्य को ठेस पहुंची है…चाहे स्वीकार करे चाहे न करे,सच्ची बात है…
जो सत् है, चित है, आनंद है,उसमें आस्था रखता है
जो असत है, जड़ है, दुःख रुप है, उसका सदुपयोग करता है …
भोग कि वासना बढ़ेगी,संग्रह की आग,खपे खपे खपे ,धन तो वहीँ पड़ा रह जाएगा,
अनिद्रा और डायबिटीज़ पकड़ लेंगे
हार्ट-अटैक और हाई बी.पी .
लो बी.पी के शिकार हो जायेंगे…
बहुत पसार मत करो,कर थोडे कि आश,
बहुत पसार जिन किया,वोह भी गए निराश…
जो छोड़ के मरना है, जो अपना नहीं होने वाला है,उसके पच मरे जा रहे हैं,गहने और चाहिए,सारियां और चाहिए,
मकान और चाहिऐ,पैसा और चाहिए …
इस से सच्चा सुख धधक जाएगा और नकली सुख कि लालच में जीवन खतम हो जाएगा…
घर में जो भोजन मिले,खा लो,जो कपड़ा मिले,अंग ढक लो,जहाँ नींद आये सो जाओ,
अभ्यास करो अपने सत् स्वभाव का, तन स्वभाव का, आनंद स्वभाव का
आप खुश-हाल हो जायेंगे,निहाल हो जायेंगे…
आपकी सात पिढियाँ तर जायेंगी…
आप का अकलमता ऐसा उपजेगा कि इंद्र का वैभव भी तुच्छ हो जाएगा॥
सदा दिवाली संत कि,आठों पहर आनंद,
अकलमता कोई उपजा, गिने इंद्र को रुंक…
तुम्हारे में वोह ताक़त है कि धरती के राजा जिसके आगे बौने हो जाते हैं,
ऐसा इंद्र तुम्हारे आगे बौना हो जाये,
ऐसा सच्चिदानंद का सुख पाने कि ताक़त तुम्हारे में है…
और उस ताकत का उपयोग नहीं करते,
फिर भी वोह साथ नहीं छोड़ती …
शरीर साथ देगा नहीं और परमात्मा साथ छोडेगा नहीं …
मरने के बाद शरीर और सम्पदा जिसको अपनी माना,
वोह नहीं चलेगा साथ में,
लेकिन सछिदानंद साथ छोडेगा नहीं…
जो कभी साथ न छोडे,
उसे बोलते हैं परमात्मा,और जो सदा साथ न रहे,
उसे कहते हैं संसार,जो अपना नहीं है,
(इसलिये)
बहुत पसरा मत करो, कर थोडे कि आश,
बहुत पसार जिन किया, वोह भी गए निराश…
पड़ा रहेगा माल खज़ाना,छोड़ त्रीय सूत जाना है,
कर सत्संग अभी से प्यारे,नहीं तो फिर पछताना है॥
सत्संग से जो विवेक जगता है,सत्संग से जो सच्चे सुख के द्वार खुलते हैं,
वोह दुनिया कि किसी सम्पदा,किसी विद्या से नहीं खुल सकते
…
कर नसिबां वाले सत्संग दो घड़ियाँ…
एक घड़ी,आधी घड़ी,आधी में पुनि आध
तुलसी संगत साध कि, हरे कोटी अपराध…
hariommmmmmmmmmm
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