प्रभु ही हमारे हितकारी हैं। उनके बिना कुछ नहीं है।
पैदा होने से पूर्व मां के शरीर में बच्चे के लिए दूध की व्यवस्था भी वही करते हैं।
मनुष्य भले ही पकवान व बिस्तर की व्यवस्था कर ले,
लेकिन भूख एवं नींद भगवान की ही देन है।
इनके बिना मनुष्य द्वारा बनाई गई वस्तुओं का कोई मूल्य नहीं है।
रावण के पास भी कई योजनाएं थी। जिनमें समुद्र के पानी को मीठा करना,
जले चूल्हे से धुआं गायब करना तथा चंद्रमा के कलंक को दूर करना शामिल थी,
लेकिन उसके अहंकार ने ऐसा नहीं होने दिया।
अहंकार अंधा रस है
जो व्यक्ति को जल्द ही नीचे गिरा देता है।
मनुष्य को प्रतिस्पर्धी होना चाहिए, लेकिन इसका उद्देश्य दूसरों की भलाई एवं एकाग्रता का हो।
बापू जी ने ध्यान पर जोर देते हुए कहा कि इससे बुद्धि का विकास होता है और सफलता मिलती है।
आध्यात्मिक शक्ति सबसे बड़ी है, इसलिए इसकी तरफ बढ़ना जरूरी है।
गुरु से मंत्र दीक्षा अवश्य लें। इससे कई रोग दूर होते हैं और मन भी प्रसन्न रहता है।
उन्होंने सत्संग में महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार को रोकने की भी अपील की।
बापू ने कहा कि परिवार में महिलाओं को कोसा जाना गलत है।
कोसे जाने वाली महिला के गुणों का भी बखान होना चाहिए।
जिस प्रकार अंधकार को सूर्य दूर करता है,
वैसे ही महिलाएं परिवार के अंधकार को मिटाकर उजाला करती हैं।
सत्संग परवचन : सीकर (राज.)05/12/२०१०
hariommmmmmmm
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें