की सच्चे सत्संगी मे ये चार लक्षण होते है
पहला लक्षण ये मिलता है की सच्चा सत्संगी हमेशा पीछे बैठता है
कभी उसको आग्रह नहीं रहता है की मै आगे बैठू
सच्चे सत्संगी को फरियाद नहीं रहता है जहा उसको जगह मिले वाहा
वह बैठ कर सत्संग का पान करता है
दूसरा लक्षण सत्संगी का यह होता है की सच्चा सत्संगी हमेशा दूसरों को मान देता है
और खुद अमानी बनकर रहता है
वह कभी भी मान की इच्छा नहीं करता है
तीसरा लक्षण सच्चे सत्संगी का यह होता है
की वह सदा दूसरों को सत्संग की जगह पर स्थान देता है
चौथा लक्षण ये बताया की सत्संगी सेवा मे रूचि रखता है
जो सेवा उसे मिल जाए वह करता है
बापू ने बताया की हम सबको अपने जीवन का निरिक्षण करना चाहिए
हममे कितने सच्चे सत्संगी के लक्षण है इसका निरिक्षण करना चाहिए
उड़िया बाबा कहते थे की सच्ची भक्ति आपने जीवन का निरिक्षण करना
जीवन मे दोषों को हटाने के लिए सदा प्रयत्न करना चाहिए
जीवन मे कितने ही मुसीबत आये पर एक साकी याद रखनी चाहिए की “ होता है
होता है ऐसा भी होता है “
सत्संग के अंत मे इश्वर के भजन मे सभी साधक एवं भक्त सारे दुनिया की दुनियादारी भूलकर
इश्वर की भक्ति मे सरावोर हो गए और आनद का माहोल बन गया था
साधो साधो.....
जपते रहे तेरा नाम ...जय बापू आशाराम...
hariommmmmm
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